बढ़ते तापमान के बीच ध्रुवीय भालुओं के डीएनए में तीव्र आनुवंशिक परिवर्तन दर्ज

द्वारा संपादित: Olga Samsonova

नवीनतम वैज्ञानिक विश्लेषणों ने वैश्विक तापमान वृद्धि और ध्रुवीय भालुओं के आनुवंशिक विन्यास के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध स्थापित किया है, जो बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति संभावित उत्तरजीविता तंत्र का संकेत देता है। ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया (UEA) के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन ने संरक्षण प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ प्रस्तुत किए हैं, क्योंकि यह समझने में सहायता करता है कि ये विशाल जीव गर्म होते विश्व में कैसे बने रह सकते हैं और किन आबादी पर संकट अधिक है।

शोधकर्ताओं ने ग्रीनलैंड के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र के ध्रुवीय भालुओं की तुलना उत्तरी आबादी से की। इस विश्लेषण में पाया गया कि गर्मी-तनाव, उम्र बढ़ने और चयापचय से जुड़े विशिष्ट जीनों की गतिविधि में भिन्नताएँ मौजूद थीं। यह दक्षिण-पूर्वी समूह लगभग 200 वर्ष पूर्व उत्तर-पूर्वी समूह से अलग हुआ था और ग्रीनलैंड के सबसे गर्म हिस्से में निवास कर रहा है। RNA अनुक्रमण तकनीक का उपयोग करते हुए 17 वयस्क भालुओं के नमूनों का विश्लेषण किया गया, जिससे यह पुष्टि हुई कि यह पहला शोध है जो सीधे तौर पर बढ़ते तापमान को किसी जंगली स्तनधारी प्रजाति के बदलते डीएनए से जोड़ता है।

ग्रीनलैंड के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में रहने वाले भालुओं के डीएनए में 'ट्रांसपोज़ेबल तत्वों' या 'जंपिंग जीन्स' की सक्रियता में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। प्रमुख शोधकर्ता डॉ. एलिस गोडेन ने बताया कि यह तीव्र डीएनए पुनर्लेखन समुद्री बर्फ के पिघलने के विरुद्ध एक अनुकूलन रणनीति का सुझाव देता है। इसके अतिरिक्त, वसा प्रसंस्करण और पोषण अवशोषण से जुड़े जीन अभिव्यक्ति क्षेत्रों में भी परिवर्तन पाए गए, जो कठोर आहार के प्रति अनुकूलन दर्शाते हैं। डॉ. गोडेन ने स्पष्ट किया कि यह समूह अपने जीनोम के हिस्सों को फिर से लिख रहा है, जो पिघलती बर्फ के खिलाफ एक जीवित रहने की रणनीति है।

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि ये दक्षिण-पूर्वी भालू, जो साल में केवल लगभग 100 दिन समुद्री बर्फ पर शिकार कर पाते हैं, वे अन्य आबादी की तुलना में कम समय के लिए बर्फ पर निर्भर हैं, जबकि दुनिया के अन्य हिस्सों के भालुओं को शिकार के लिए कम से कम 180 दिन या उससे अधिक बर्फ की आवश्यकता होती है। वाशिंगटन विश्वविद्यालय की ध्रुवीय भालू जीवविज्ञानी क्रिस्टिन लैड्रे ने उल्लेख किया कि ये भालू ऐसे वातावरण में रहने के लिए अनुकूलित हो रहे हैं जो भविष्य का प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि अधिकांश आर्कटिक भालुओं के पास ग्लेशियर की बर्फ तक पहुँच नहीं है, इसलिए यह अनुकूलन पूरे आर्कटिक के लिए एक सार्वभौमिक समाधान नहीं है।

प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) के अनुसार, वर्तमान में दुनिया भर में लगभग 26,000 ध्रुवीय भालू बचे हैं, और ग्लोबल वार्मिंग को उनके लिए सबसे बड़ा खतरा सूचीबद्ध किया गया है। अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने भविष्यवाणी की है कि यदि जलवायु का यही रुख जारी रहा, तो 2050 तक दुनिया के दो-तिहाई ध्रुवीय भालू गायब हो सकते हैं, जो ग्रीनलैंड और उत्तरी कनाडा के तटों से समाप्त हो जाएंगे। यह अध्ययन इस बात पर जोर देता है कि ये जीव तेजी से बदलते वातावरण में खुद को ढालने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, भले ही उनके डीएनए में परिवर्तन हो रहे हों, लेकिन प्रजाति के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के निरंतर प्रयास सर्वोपरि बने हुए हैं।

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स्रोतों

  • Mirage News

  • The Guardian

  • Semantic Scholar

  • YouTube

  • YouTube

  • YouTube

  • The Guardian

  • EurekAlert! Science News

  • Alice Godden - Google Scholar

  • bioRxiv

  • Alice Godden - University of East Anglia

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