डिजिटल युग में बच्चों की सुरक्षा: पारिवारिक संवाद और सामाजिक उत्तरदायित्व पर सम्मेलन

द्वारा संपादित: Olga Samsonova

समकालीन डिजिटल चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रगतिशील शिक्षा उन्नत कार्यप्रणाली की खोज कर रही है, जिसका मुख्य केंद्र बच्चों पर डिजिटल संसार के बढ़ते प्रभाव को समझना है। इस दिशा में, कोन्या और करामा के मेवलांना विकास एजेंसी (MEVKA) के समर्थन से एक महत्वपूर्ण सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसने सामाजिक समर्थन तंत्रों को मज़बूत करने की क्षेत्रीय प्राथमिकताओं को रेखांकित किया। इस आयोजन में शिक्षाविद् और लेखक ज़ेकेरिया इफिलोउलु ने 'डिजिटल संसार, हमारे बच्चे और परिवार' विषय पर अपनी विशेषज्ञता प्रस्तुत की, जो परिवारों और बच्चों के लिये सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को बेहतर बनाने की व्यापक परियोजना का हिस्सा था।

इफिलोउलु ने अपने संबोधन में परिवार के भीतर संवाद की महत्ता, डिजिटल व्यसन की बढ़ती प्रवृत्ति, और विशेष रूप से 2025 के आँकड़ों का हवाला देते हुए युवाओं पर सोशल मीडिया के प्रभावों पर गहन चर्चा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि बच्चों को ऑनलाइन खतरों से बचाना और प्रौद्योगिकी के साथ उनके जुड़ाव में स्वस्थ संतुलन स्थापित करना एक सामूहिक उत्तरदायित्व है, जिसमें माता-पिता और शैक्षणिक संस्थानों दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह दृष्टिकोण इस बात पर ज़ोर देता है कि डिजिटल साक्षरता और जिम्मेदारीपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना आज की शिक्षा का एक अनिवार्य अंग है। वक्ता ने इस बात पर चेतावनी दी कि सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से परिवार की संरचना में प्रेम और सम्मान जैसे मूलभूत मूल्यों का क्षरण होता है।

प्रगतिशील शिक्षा का एक केंद्रीय सिद्धांत यह है कि बच्चों को हानिकारक ऑनलाइन सामग्री और व्यवहार-परिवर्तनकारी खेलों, जिनमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से संचालित गतिविधियाँ भी शामिल हैं, से सुरक्षित रखा जाए। यह चिंता इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि अध्ययनों से पता चलता है कि अत्यधिक मोबाइल उपयोग करने वाले 73 प्रतिशत लोग डिजिटल निर्भरता से पीड़ित पाए गए हैं, और किशोरों में अवसाद का खतरा बढ़ रहा है, जिससे उनके दिमागी विकास पर असर पड़ रहा है। इस संदर्भ में, इफिलोउलु द्वारा सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय के रूप में बच्चों के साथ मज़बूत भावनात्मक और प्रेमपूर्ण बंधन स्थापित करने की वकालत की गई।

ये पारिवारिक संबंध आवश्यक जुड़ाव का सर्वोच्च रूप प्रस्तुत करते हैं, जो बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिये आधारशिला का काम करते हैं। उदाहरण के लिये, डॉ. राहुल वर्मा जैसे विशेषज्ञों ने भी इस बात पर ज़ोर दिया है कि भोजन के समय (मील टाइम) को 'पारिवारिक समय' बनाना चाहिए और डाइनिंग टेबल पर डिजिटल उपकरणों के लिये कोई स्थान नहीं होना चाहिए, ताकि बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय सुनिश्चित हो सके। इसके अतिरिक्त, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की डॉ. ममता ने भी बाल दिवस के अवसर पर यह रेखांकित किया कि बच्चों को डिजिटल सीमाएँ सिखाने से पहले अभिभावकों को स्वयं मोबाइल की लत से दूर होना आवश्यक है।

यह प्रगतिशील दृष्टिकोण केवल खतरों को पहचानने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सक्रिय रूप से समाधान प्रस्तुत करता है, जिसमें पारिवारिक संवाद को प्राथमिकता देना शामिल है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भी सोशल मीडिया अकाउंट पंजीकरण के लिये 18 या 21 वर्ष की आयु सीमा स्थापित करने की सिफारिश की है, जो बच्चों को डिजिटल दुनिया के नकारात्मक प्रभावों से बचाने की दिशा में एक संस्थागत प्रयास को दर्शाता है। इस प्रकार, MEVKA द्वारा समर्थित यह पहल डिजिटल युग में बच्चों के समग्र विकास और पारिवारिक सामंजस्य को बनाए रखने के लिये एक बहुआयामी रणनीति का हिस्सा है, जो शिक्षा को सामाजिक कल्याण से जोड़ती है।

स्रोतों

  • Yenimeram.com.tr

  • Yeni Meram

  • Anadolu'da Bugün Gazetesi

  • Niğde Haber Gazetesi

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