नई दिल्ली, भारत – 19 अगस्त, 2025 को भारत और चीन के बीच 24वें विशेष प्रतिनिधियों के संवाद का आयोजन हुआ, जिसमें द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और सीमा प्रबंधन पर महत्वपूर्ण समझौते हुए। इस बैठक में चीनी विदेश मंत्री वांग यी और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने सीमा प्रश्न पर चर्चा की। इस संवाद का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच सीमा प्रबंधन को बेहतर बनाना और शांति बनाए रखना था।
एक प्रमुख परिणाम के रूप में, सीमा प्रबंधन को बढ़ाने और सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए एक नई कार्य समूह (Working Group) की स्थापना पर सहमति बनी। इसके अतिरिक्त, तीन प्रमुख दर्रों - लिपुलेख दर्रा, शिपकी ला दर्रा और नाथु ला दर्रा - के माध्यम से सीमा व्यापार को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया गया, जो पांच साल के निलंबन के बाद एक महत्वपूर्ण कदम है। दोनों देशों ने लोगों के बीच आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए भारत और चीन के बीच सीधी उड़ान सेवाओं को शीघ्र बहाल करने की प्रतिबद्धता जताई। साथ ही, विभिन्न श्रेणियों के यात्रियों के लिए वीजा प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए कदम उठाए जाएंगे।
चीन ने भारत की दुर्लभ पृथ्वी, उर्वरक और सुरंग बोरिंग मशीनों जैसी संसाधनों की जरूरतों को पूरा करने का भी वादा किया। यह संवाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 31 अगस्त, 2025 को चीन के तियानजिन में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन की आगामी यात्रा के लिए मंच तैयार करेगा। यह सात वर्षों में चीन की उनकी पहली यात्रा होगी।
ऐतिहासिक संदर्भ में, 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए थे, जिसके कारण सीमा पर गतिरोध उत्पन्न हुआ था। हालांकि, पिछले नौ महीनों में सीमा पर शांति और स्थिरता देखी गई है, जैसा कि अजीत डोभाल ने वांग यी के साथ अपनी बैठक में उल्लेख किया था। यह प्रगति दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के उपायों का परिणाम है।
यह कूटनीतिक पहल दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग और लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। सीमा व्यापार का फिर से शुरू होना विशेष रूप से उन समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है जो सीमावर्ती क्षेत्रों में रहते हैं, क्योंकि यह स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने और आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुव्यवस्थित करने में मदद कर सकता है। यह कदम वैश्विक व्यापार और भू-राजनीतिक स्थिरता पर भी प्रभाव डाल सकता है, खासकर जब दोनों देश अमेरिका के टैरिफ जैसे वैश्विक आर्थिक दबावों का सामना कर रहे हैं।