4 अगस्त, 2025 को, भारत ने रूस से कच्चे तेल के आयात पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की। यह कदम यूक्रेन में रूस के निरंतर युद्ध के बाद उठाया गया है, जिसने ऊर्जा बाजारों पर महत्वपूर्ण वैश्विक प्रभाव डाला है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर कहा कि भारत रूसी तेल खरीदकर खुले बाजार का बड़ा हिस्सा ले रहा है, और इस कारण से वे भारत पर लगाए गए शुल्क में महत्वपूर्ण वृद्धि करेंगे। भारत ने इस कदम को "अभूतपूर्व, अनुचित और अनावश्यक" बताया है और कहा है कि वह "अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा।" विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि उनकी आयात टोकरी देश के समग्र हितों पर आधारित है और भारत के 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है। यह कदम भारत-रूस व्यापार संबंधों में बढ़ते तनाव को दर्शाता है।
ट्रम्प के अप्रैल में 25% अतिरिक्त शुल्क लगाने के सुझाव और पिछले महीने रूसी तेल आयात पर 25% शुल्क की घोषणा, व्यापार नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देते हैं। इस नए शुल्क के प्रभावी होने की तारीख 27 अगस्त, 2025 है। ऊर्जा विश्लेषकों का कहना है कि भारत को रूसी तेल का आयात कम करने में एक साल तक का समय लग सकता है। तेल की कीमतों में वृद्धि से अमेरिका और दुनिया भर में मुद्रास्फीति में तेज वृद्धि होगी। फेडरल रिजर्व का अनुमान है कि कच्चे तेल में प्रत्येक $10 की वृद्धि से अमेरिकी मुद्रास्फीति में लगभग 0.2 प्रतिशत अंक की वृद्धि होती है। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (FIEO) के अध्यक्ष, एस.एस. रहलान ने कहा कि यह कदम भारतीय निर्यात के लिए एक गंभीर झटका है, क्योंकि उनके लगभग 55% शिपमेंट सीधे या परोक्ष रूप से निर्भर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कई निर्यात ऑर्डर पहले ही रोक दिए गए हैं क्योंकि खरीदार बढ़ी हुई लागतों को देखते हुए सोर्सिंग निर्णयों का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं। लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के नेतृत्व वाले कई क्षेत्रों के लिए, इस अचानक लागत वृद्धि को अवशोषित करना संभव नहीं है।