एक दुर्लभ द्विपक्षीय समझौते के तहत, ट्रम्प प्रशासन ने 120 ईरानी नागरिकों को संयुक्त राज्य अमेरिका से निर्वासित कर दिया है। यह कदम वाशिंगटन और तेहरान के बीच महीनों की बातचीत के बाद उठाया गया है, जो दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए एक महत्वपूर्ण घटना है। निर्वासित किए गए व्यक्ति, जिनमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल हैं, अवैध रूप से अमेरिका में दाखिल हुए थे और उन्हें लुइसियाना से एक चार्टर्ड उड़ान द्वारा कतर के रास्ते ईरान भेजा गया था। यह लगभग 400 ईरानी नागरिकों को निर्वासित करने की एक बड़ी योजना का पहला चरण है।
ईरानी अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि 120 ईरानी नागरिक अमेरिका से निर्वासित किए जा रहे हैं और जल्द ही अपने वतन लौटेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि इन नागरिकों को पूर्ण कांसुलर सहायता प्रदान की जाएगी। ईरान के विदेश मंत्रालय के संसदीय मामलों के महानिदेशक, हुसैन नूशबादी के अनुसार, अमेरिकी आव्रजन अधिकारियों ने लगभग 400 ईरानियों को निष्कासित करने का निर्णय लिया है, जिनमें से अधिकांश ने मैक्सिको के रास्ते अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश किया था। कुछ ऐसे भी हैं जिनके पास वैध निवास परमिट थे, लेकिन उन्हें भी निर्वासन सूची में शामिल किया गया था।
यह निर्वासन ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिका और ईरान के बीच तनाव बढ़ा हुआ है, खासकर हाल ही में ईरान की परमाणु सुविधाओं पर हुए हमलों के बाद। हालांकि, यह घटना दर्शाती है कि विशिष्ट साझा हितों, जैसे कि अनियमित प्रवासन का प्रबंधन, के होने पर विरोधी देशों के बीच भी व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है। यह कदम राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की अवैध आप्रवासन पर व्यापक कार्रवाई के अनुरूप है, जिसमें पहले भी अन्य देशों के प्रवासियों को पनामा जैसे देशों में निर्वासित किया गया था।
मानवाधिकार संगठनों ने इस निर्वासन पर चिंता व्यक्त की है, क्योंकि ईरान में मानवाधिकारों की स्थिति गंभीर बनी हुई है। राजनीतिक असंतुष्टों, कार्यकर्ताओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों और LGBTQ+ व्यक्तियों के उत्पीड़न की व्यापक रिपोर्टें हैं। आलोचकों का कहना है कि अमेरिका की यह निर्वासन नीति कमजोर प्रवासियों को इन कठोर परिस्थितियों में वापस भेजकर उन्हें खतरे में डाल सकती है। कई ईरानी नागरिक, जो अवैध रूप से दक्षिणी अमेरिकी सीमा पर पहुंचे थे और शरण के लिए आवेदन किया था, उन्होंने इस्लामी गणराज्य द्वारा अपने राजनीतिक या धार्मिक विश्वासों के कारण उत्पीड़न का हवाला दिया था। इन दावों के बावजूद, निर्वासन के समय अधिकांश शरण अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया गया था या उन पर कार्रवाई नहीं हुई थी।
यह दुर्लभ सहयोग इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे भू-राजनीतिक तनाव के बीच भी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति जटिलताओं से भरी होती है। यह घटना वैश्विक आप्रवासन की चुनौतियों और राष्ट्रों के बीच संबंधों की बहुआयामी प्रकृति को भी दर्शाती है। ईरान के अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि निर्वासितों को सुरक्षित रखा जाएगा, लेकिन कुछ रिपोर्टों के अनुसार, कई लोग निराश और भयभीत थे। यह स्थिति अंतरराष्ट्रीय संबंधों और प्रवासन नीतियों के नैतिक निहितार्थों पर महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े करती है।