विविध अनाज की रोटी: स्वास्थ्य और परंपरा का संगम

द्वारा संपादित: Olga Samsonova

भारतीय खान-पान में अनाज का सदियों पुराना महत्व है, जो न केवल पोषण का आधार है बल्कि सांस्कृतिक पहचान का भी एक अभिन्न अंग है। हाल के वर्षों में, बाजरा, ज्वार और रागी जैसे पारंपरिक अनाजों को उनके असाधारण स्वास्थ्य लाभों के कारण फिर से महत्व मिल रहा है। ये अनाज, जिन्हें अक्सर 'प्राचीन अनाज' कहा जाता है, आधुनिक आहार में एक पौष्टिक विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। मल्टीग्रेन रोटी, जो विभिन्न प्रकार के अनाजों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, और बेसन के आटे के मिश्रण से बनती है, फाइबर का एक उत्कृष्ट स्रोत है। यह पाचन क्रिया को सुचारू बनाने और रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक है। इस मिश्रण में मौजूद विभिन्न विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं।

मक्के के आटे से बनी मक्की की रोटी, जो स्वाभाविक रूप से ग्लूटेन-मुक्त है, अपने उच्च फाइबर सामग्री के कारण पाचन और तृप्ति में योगदान करती है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट आंखों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं और बी-विटामिन ऊर्जा चयापचय को बढ़ाते हैं। हालांकि, कुछ आहार विशेषज्ञ व्यक्तिगत पाचन और पोषक तत्वों के अवशोषण को अधिकतम करने के लिए अनाजों को अलग-अलग खाने की सलाह देते हैं। फिर भी, मल्टीग्रेन और मक्की की रोटी दोनों ही संतुलित आहार के मूल्यवान घटक हो सकते हैं, और इनका सेवन व्यक्तिगत स्वास्थ्य आवश्यकताओं के अनुसार किया जाना चाहिए।

रागी, बाजरा और ज्वार जैसे प्राचीन अनाज भारत की कृषि विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। ये अनाज न केवल पोषक तत्वों से भरपूर हैं, बल्कि इनमें कैल्शियम, आयरन और फाइबर जैसे खनिज भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। रागी को 'हड्डी-निर्माता' के रूप में जाना जाता है और यह कैल्शियम का एक उत्कृष्ट स्रोत है, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करता है। बाजरा मैग्नीशियम, पोटेशियम और आयरन से भरपूर है और पाचन में सहायता करता है, साथ ही रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। ज्वार, जिसे 'ग्लूटेन-मुक्त चमत्कार' भी कहा जाता है, हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, पाचन में सहायता करता है और वजन प्रबंधन में योगदान देता है।

ये अनाज न केवल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि ये पर्यावरण के लिए भी टिकाऊ हैं। ये सूखा-प्रतिरोधी फसलें हैं जिन्हें कम पानी और संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिससे वे जलवायु परिवर्तन के इस दौर में एक महत्वपूर्ण विकल्प बन जाते हैं। इन प्राचीन अनाजों को अपने आहार में शामिल करना न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए एक सचेत चुनाव है, बल्कि यह टिकाऊ कृषि पद्धतियों का समर्थन करने और ग्रामीण समुदायों की आजीविका को मजबूत करने का एक तरीका भी है। भारतीय व्यंजनों में इन अनाजों का पुनरुत्थान एक ऐसे आंदोलन का हिस्सा है जो स्वस्थ और टिकाऊ खान-पान की ओर बढ़ रहा है। शेफ और घरेलू रसोइए इन बहुमुखी अनाजों को पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह के व्यंजनों में एकीकृत कर रहे हैं, जिससे स्वाद और पोषण का एक अनूठा संगम तैयार हो रहा है।

स्रोतों

  • The Times of India

  • Rotimatic

  • The Indian Express

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