अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर मंडरा रहे खतरों की पड़ताल करती ZDF डॉक्यूमेंट्री

द्वारा संपादित: Anulyazolotko Anulyazolotko

ZDF रिपोर्टर मित्री सिरिन की नई डॉक्यूमेंट्री, "क्या हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है?", जर्मनी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आसपास चल रही बहसों की गहराई से पड़ताल करती है। ऑलेंसबाक अध्ययन के अनुसार, 40% से अधिक जर्मन मानते हैं कि वे अब अपने राजनीतिक विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त नहीं कर सकते हैं। यह फिल्म नागरिकों के विविध दृष्टिकोणों को प्रस्तुत करती है, जिसमें सैक्सोनी के डोबेलन के लोग भी शामिल हैं, जो महसूस करते हैं कि उनकी राय को अनुचित रूप से लेबल किया जा रहा है। अन्य लोग स्थापित राजनीतिक दलों के साथ निराशा व्यक्त करते हैं, उन्हें कोई वास्तविक विकल्प प्रदान न करने वाला मानते हैं।

डॉक्यूमेंट्री में सार्वजनिक हस्तियों द्वारा की गई कानूनी कार्रवाइयों का भी उल्लेख है, जैसे कि एफडीपी राजनेता मैरी-एग्नेस स्ट्रैक-ज़िमरमैन, जिन्होंने आपत्तिजनक बयानों के लिए लगभग 2000 मुकदमे दायर किए हैं। यह सवाल उठाता है कि स्वयं अलोकतांत्रिक हुए बिना अलोकतांत्रिक ताकतों से कैसे बचाव किया जाए। सिरिन की रिपोर्ट वर्तमान चिंताओं की तुलना अतीत के उन अनुभवों से करती है जब स्वतंत्रता का अभाव था, जिसमें एक पूर्व स्टासी कैदी, थॉमस क्लिंगेस्टीन की अंतर्दृष्टि भी शामिल है। यह फिल्म, जो ZDF पर प्रसारित हुई, ZDF मेडियाथेक में उपलब्ध है।

जर्मनी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 5 में निहित है। यह भाषण, लेखन और छवियों में अपनी राय को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने और प्रसारित करने का अधिकार देता है। इसमें प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है, और कोई सेंसरशिप नहीं है। हालाँकि, यह अधिकार असीमित नहीं है और इसे घृणास्पद भाषण या अपमानजनक बयानों को रोकने के लिए सीमित किया जा सकता है। हाल के वर्षों में, जर्मनी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं पर बहस तेज हो गई है। कुछ लोगों का तर्क है कि घृणास्पद भाषण और गलत सूचना से निपटने के लिए कड़े कानूनों की आवश्यकता है, जबकि अन्य चिंता व्यक्त करते हैं कि ये कानून असहमति को दबाने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

डोबेलन जैसे शहरों में, जहां के निवासियों को लगता है कि उनकी राय को गलत तरीके से लेबल किया जा रहा है, यह तनाव विशेष रूप से स्पष्ट है। यह भावना कि कुछ आवाजों को चुप कराया जा रहा है, जर्मनी के राजनीतिक परिदृश्य में एक व्यापक चिंता को दर्शाती है। मैरी-एग्नेस स्ट्रैक-ज़िमरमैन जैसे राजनेताओं द्वारा दायर किए गए मुकदमों की संख्या, इस बात पर प्रकाश डालती है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रेखा कहाँ खींची जानी चाहिए, इस पर समाज में मतभेद है। यह सवाल कि हम स्वयं अलोकतांत्रिक हुए बिना अलोकतांत्रिक ताकतों से कैसे बचाव कर सकते हैं, समकालीन लोकतंत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। पूर्व स्टासी कैदी के अनुभव, जो पूर्वी जर्मनी में स्वतंत्रता के अभाव के समय को दर्शाते हैं, एक गंभीर ऐतिहासिक संदर्भ प्रदान करते हैं। स्टासी, पूर्वी जर्मनी की गुप्त पुलिस, असंतोष को दबाने और नागरिकों की निगरानी के लिए जानी जाती थी। इन ऐतिहासिक अनुभवों को समझना वर्तमान बहसों के महत्व को रेखांकित करता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा कैसे की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि अतीत की गलतियाँ न दोहराई जाएँ। जर्मनी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस जारी है, और यह डॉक्यूमेंट्री इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रकाश डालती है।

अतिरिक्त शोध से पता चलता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं पर इसी तरह की बहसें अन्य यूरोपीय देशों में भी सक्रिय रूप से चल रही हैं, जहाँ विभिन्न कानूनी प्रणालियाँ और सांस्कृतिक मानदंड टकराते हैं। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम में घृणास्पद भाषण को रोकने के उद्देश्य से कानून हैं, जो कभी-कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अत्यधिक प्रतिबंध के बारे में विवाद पैदा करते हैं। साथ ही, स्वीडन जैसे स्कैंडिनेवियाई देशों में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की स्थिति पारंपरिक रूप से मजबूत है, लेकिन वहाँ भी फर्जी खबरों और सार्वजनिक राय पर उनके प्रभाव से निपटने के उपायों पर चर्चा की जा रही है। यह भी उल्लेख किया गया है कि जर्मनी प्रेस स्वतंत्रता रैंकिंग में उच्च स्थान पर है, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं पर बहस जारी है। ये समानताएँ डिजिटल संचार के युग में आधुनिक लोकतंत्रों के सामने आने वाली चुनौतियों की सार्वभौमिकता को रेखांकित करती हैं।

स्रोतों

  • Gießener Allgemeine

  • Fernsehrat: Beleidigungen und Bedrohungen von Journalistinnen und Journalisten gefährden die Pressefreiheit

  • Ist unsere Meinungsfreiheit in Gefahr?

  • Live: re:publica: Meinungsfreiheit in Gefahr?

  • Auslandsberichterstattung zeigt Unverzichtbarkeit öffentlich-rechtlicher Sender

  • ZDF-Fernsehrat verurteilt Angriffe auf die Pressefreiheit

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