ग्रीनलैंड की विशाल बर्फ की चादर के पिघलने से निकलने वाला पानी आर्कटिक महासागर में जीवन के लिए एक अप्रत्याशित वरदान साबित हो रहा है। यह पिघला हुआ पानी अपने साथ पोषक तत्व लाता है, जो फाइटोप्लांकटन नामक सूक्ष्म समुद्री शैवाल के विकास को बढ़ावा देते हैं। ये शैवाल समुद्री खाद्य श्रृंखला का आधार हैं और कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हाल के अध्ययनों से पता चला है कि ग्रीनलैंड से निकलने वाले पिघले पानी में मौजूद आयरन और नाइट्रेट जैसे पोषक तत्व फाइटोप्लांकटन के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। नासा द्वारा समर्थित कंप्यूटर सिमुलेशन से पता चला है कि ग्रीनलैंड के जैकबशवन ग्लेशियर से निकलने वाले पिघले पानी से सतह पर गहरे समुद्र के पोषक तत्व पहुंचते हैं, जिससे गर्मियों में फाइटोप्लांकटन के विकास में 15% से 40% तक की वृद्धि हो सकती है। यह निष्कर्ष 1998 और 2018 के बीच आर्कटिक जल में फाइटोप्लांकटन के विकास में 57% की वृद्धि के पिछले अवलोकनों के अनुरूप है।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया है कि पिछले एक दशक में आर्कटिक महासागर में फाइटोप्लांकटन की वृद्धि दर 57% बढ़ी है। यह वृद्धि पहले पिघलते समुद्री बर्फ से जुड़ी थी, लेकिन अब यह सूक्ष्म शैवाल की बढ़ती सांद्रता से प्रेरित है। प्रोफेसर केविन अरिगो के अनुसार, फाइटोप्लांकटन बायोमास का बढ़ता प्रभाव आर्कटिक के लिए एक "महत्वपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन" का प्रतिनिधित्व कर सकता है, जो पृथ्वी पर कहीं भी सबसे तेजी से गर्म होने वाला क्षेत्र है।
फाइटोप्लांकटन की बढ़ी हुई प्रचुरता समुद्री खाद्य जाल को मजबूत कर सकती है, जिससे मछलियों और समुद्री स्तनधारियों की बड़ी आबादी का समर्थन हो सकता है। हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि इन जलवायु-संचालित परिवर्तनों के दीर्घकालिक पारिस्थितिक परिणामों को समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये परिवर्तन न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं, बल्कि वैश्विक कार्बन चक्र पर भी इनका प्रभाव पड़ता है। फाइटोप्लांकटन द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण जलवायु परिवर्तन को कम करने में एक महत्वपूर्ण कारक है।