अमेरिकी सरकार ने टैरिफ पर एक संघीय अपीलीय अदालत के फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। यह मामला राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ लगाने के अधिकार की वैधता पर केंद्रित है, जिसे उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियों अधिनियम (IEEPA) के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए आवश्यक बताया था।
29 अगस्त को, अमेरिकी कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर द फेडरल सर्किट ने 7-4 के बहुमत से फैसला सुनाया कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने IEEPA के तहत अपने अधिकार का उल्लंघन किया है। अदालत ने माना कि इस अधिनियम के तहत टैरिफ लगाने का स्पष्ट अधिकार राष्ट्रपति को नहीं दिया गया है, और यह शक्ति विशेष रूप से कांग्रेस के पास है। इस फैसले ने टैरिफ के एक प्रमुख स्तंभ को हिला दिया है, जो पिछले 100 वर्षों में उच्चतम स्तर पर थे। हालांकि, अदालत ने अपने फैसले को 14 अक्टूबर तक या सुप्रीम कोर्ट के निर्णय तक प्रभावी रहने दिया है, ताकि प्रशासन को अपील करने का समय मिल सके।
सॉलिसिटर जनरल डी. जॉन सॉयर ने सुप्रीम कोर्ट से मामले की शीघ्र सुनवाई का आग्रह किया है, जिसमें नवंबर की शुरुआत में मौखिक दलीलें पेश करने का सुझाव दिया गया है। सॉयर का तर्क है कि टैरिफ राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण हैं, और इन पर रोक लगाने से अमेरिका व्यापार प्रतिशोध के प्रति असुरक्षित हो जाएगा।
इस मामले में कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं: क्या IEEPA राष्ट्रपति को कांग्रेस की स्पष्ट मंजूरी के बिना व्यापक टैरिफ लगाने का अधिकार देता है? कार्यकारी और विधायी शाखाओं के बीच व्यापार नीति को लेकर शक्तियों के संतुलन पर इसके क्या निहितार्थ हैं? और क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करेगा? यह मामला अमेरिकी व्यापार नीति और सरकार के भीतर शक्तियों के संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है। यदि सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को बरकरार रखता है, तो यह राष्ट्रपति के कार्यकारी अधिकारों की सीमा को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है। यह ध्यान देने योग्य है कि 48 वर्षों में किसी भी अन्य राष्ट्रपति ने टैरिफ लगाने के लिए IEEPA का उपयोग नहीं किया है, जो इस मामले की विशिष्टता को दर्शाता है। छोटे व्यवसायों और कुछ राज्यों ने भी इन टैरिफ को चुनौती दी है, जो उनके संचालन पर गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं। इस मामले का अंतिम निर्णय अमेरिकी व्यापार शक्तियों के भविष्य को आकार देगा।