हंगरी और स्लोवाकिया को रूसी तेल की आपूर्ति करने वाली मैत्री पाइपलाइन (Druzhba pipeline) के माध्यम से तेल का प्रवाह रुक गया है। यह रुकावट यूक्रेन की सेना द्वारा मैत्री पाइपलाइन के एक ट्रांसफार्मर स्टेशन पर किए गए हमले के कारण हुई है। इस घटना ने दोनों देशों की ऊर्जा सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।
हंगरी के विदेश मंत्री, पीटर सिज्जार्तो ने इस घटना को हंगरी की ऊर्जा सुरक्षा पर हमला बताया। उन्होंने कहा कि रूसी अधिकारियों ने उन्हें सूचित किया है कि ट्रांसफार्मर स्टेशन की मरम्मत का काम चल रहा है, लेकिन आपूर्ति कब फिर से शुरू होगी, इस बारे में कोई स्पष्ट समय-सीमा नहीं है। सिज्जार्तो ने इस घटना के लिए यूक्रेन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यह हंगरी को युद्ध में खींचने का एक और प्रयास है। दूसरी ओर, यूक्रेन के विदेश मंत्री, एंड्री सिबिहा ने कहा कि हंगरी को अपनी शिकायतों के लिए मॉस्को की ओर देखना चाहिए, न कि कीव की ओर। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि युद्ध के लिए रूस जिम्मेदार है।
स्लोवाक पाइपलाइन ऑपरेटर ट्रांसपेट्रोल ने भी तेल आपूर्ति में रुकावट की पुष्टि की है, लेकिन कहा है कि घटना स्लोवाकिया की सीमा के बाहर होने के कारण उनके पास अधिक जानकारी नहीं है। मैत्री पाइपलाइन, जो 1964 से चालू है, पूर्वी यूरोप के लिए रूसी तेल का एक प्रमुख स्रोत रही है। यह पाइपलाइन रूस से शुरू होकर बेलारूस, यूक्रेन से होते हुए पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया, चेक गणराज्य और जर्मनी तक जाती है। यूरोपीय संघ ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के जवाब में रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन मैत्री पाइपलाइन को छूट दी गई थी ताकि इन देशों को वैकल्पिक स्रोत खोजने का समय मिल सके।
इस बीच, हंगरी की तेल कंपनी एमओएल (MOL) ने हाल ही में अपनी दीर्घकालिक रणनीति को अपडेट किया है, जिसमें हरित निवेश पर जोर दिया गया है और 2030 तक 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश करने की योजना है। कंपनी का लक्ष्य नवीकरणीय ईंधन, हरित हाइड्रोजन और भूतापीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करना है। यह घटना हंगरी और स्लोवाकिया के लिए ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने की आवश्यकता को और रेखांकित करती है। एमओएल ने पहले ही कैस्पियन क्षेत्र से वैकल्पिक कच्चे तेल के आयात को बढ़ाने के लिए एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे सालाना 160,000 टन अतिरिक्त कच्चे तेल को संसाधित करने की क्षमता बढ़ेगी। यह घटना यूरोप की ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाओं की नाजुकता को उजागर करती है और भू-राजनीतिक संघर्षों के कारण आवश्यक संसाधनों में व्यवधान की संभावना को दर्शाती है। यह इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि कैसे ऊर्जा सुरक्षा रणनीतियों को मजबूत करने और ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने की आवश्यकता है, खासकर ऐसे समय में जब क्षेत्रीय तनाव बना हुआ है।