हंगरी ने यूरोपीय संघ और यूरोपीय शांति सुविधा (ईपीएफ) के खिलाफ यूरोपीय संघ के न्यायालय में मुकदमा दायर किया है। यह कानूनी कार्रवाई यूक्रेन को सहायता प्रदान करने के लिए जमे हुए रूसी संपत्तियों से प्राप्त लाभ के उपयोग को चुनौती देती है। हंगरी का तर्क है कि यह निर्णय प्रक्रियात्मक अनियमितताओं और पर्याप्त परामर्श की कमी के कारण अवैध है। यह मामला जुलाई 2025 में दायर किया गया था और 25 अगस्त, 2025 को अदालत ने इसे विचार के लिए स्वीकार कर लिया।
हंगरी विशेष रूप से ईपीएफ के उस निर्णय को रद्द करना चाहता है जो जमे हुए रूसी संपत्तियों के प्रबंधन से उत्पन्न होने वाले शुद्ध लाभ का 99.7% यूक्रेन को सैन्य सहायता के रूप में आवंटित करता है। हंगरी के विदेश मंत्री, पीटर सिज्जार्तो ने इस बात पर जोर दिया है कि हंगरी की विदेश नीति का मुख्य कार्य रूस, अमेरिका और चीन सहित प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ सम्मानजनक और पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग बनाए रखना है। उन्होंने यूरोपीय संघ के नेतृत्व की आलोचना की, यह कहते हुए कि उन्होंने क्षेत्र को इन देशों से अलग कर दिया है और आर्थिक संबंधों को सीमित कर दिया है।
यह कानूनी लड़ाई यूरोपीय संघ के भीतर सदस्य देशों के बीच चल रहे तनावों और विभिन्न दृष्टिकोणों को उजागर करती है, खासकर जमे हुए रूसी संपत्तियों के प्रबंधन और यूक्रेन को सहायता प्रदान करने के संबंध में। हंगरी का रुख राष्ट्रीय आर्थिक हितों और एक स्वतंत्र विदेश नीति के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह मामला यूरोपीय संघ के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रियाओं और सदस्य राज्यों के वीटो अधिकारों के महत्व पर भी प्रकाश डालता है।
यूरोपीय संघ ने मई 2024 में जमे हुए रूसी संपत्तियों से प्राप्त आय का उपयोग करने का निर्णय लिया था, जिसका उद्देश्य यूक्रेन को वित्तीय सहायता प्रदान करना था। इस निर्णय के तहत, ईपीएफ को इन संपत्तियों से होने वाली आय का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है, जिसका उपयोग सदस्य देशों को यूक्रेन को सैन्य सहायता प्रदान करने की लागत की प्रतिपूर्ति के लिए किया जाता है। अनुमान है कि इस व्यवस्था से सालाना 3 से 5 बिलियन यूरो की सैन्य सहायता यूक्रेन को मिल सकती है।
हंगरी का यह मुकदमा यूरोपीय संघ के कानून के सिद्धांतों के उल्लंघन का दावा करता है, विशेष रूप से यह तर्क देते हुए कि निर्णय लेते समय उसके विचारों को पर्याप्त रूप से ध्यान में नहीं रखा गया और परामर्श प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया। यह मामला यूरोपीय संघ के भीतर एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकता है, जो सदस्य राज्यों के वीटो अधिकारों की रक्षा कर सकता है। हालांकि, इस तरह के कानूनी मामलों में वर्षों लग सकते हैं, और इस बीच, यूक्रेन को सहायता का प्रवाह जारी रहने की संभावना है, संभवतः अन्य माध्यमों से। हंगरी ने पहले भी जून 2024 में इसी तरह का एक मुकदमा दायर किया था, जो अभी भी विचाराधीन है, जो यूक्रेन को सहायता प्रदान करने के संबंध में यूरोपीय संघ के निर्णयों के प्रति उसकी निरंतर आपत्ति को दर्शाता है।
हंगरी की यह कार्रवाई यूरोपीय संघ के भीतर एक जटिल भू-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को दर्शाती है, जहाँ राष्ट्रीय हित और सामूहिक निर्णय अक्सर टकराते हैं।