21 सितंबर, 2025 को, बाल्टिक सागर के ऊपर अंतरराष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में एक रूसी IL-20M टोही विमान को जर्मन यूरोफाइटर जेट्स ने रोका। यह विमान बिना किसी उड़ान योजना या रेडियो संपर्क के उड़ान भर रहा था, जो हाल के हफ्तों में रूसी हवाई क्षेत्र के उल्लंघन की बढ़ती घटनाओं की श्रृंखला का हिस्सा है, जिससे बाल्टिक क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है।
जर्मन वायु सेना ने अज्ञात विमान का पता चलने पर दो यूरोफाइटर जेट्स को तैनात किया। पहचान के बाद, यह पुष्टि हुई कि यह एक रूसी IL-20M टोही विमान था, जिसे "Coot-A" के नाम से भी जाना जाता है। यह विमान संचार और रडार सिस्टम की निगरानी के लिए डिज़ाइन किया गया है। जर्मन जेट्स ने रूसी विमान को तब तक एस्कॉर्ट किया जब तक कि स्वीडिश नाटो सहयोगियों को नियंत्रण हस्तांतरित नहीं कर दिया गया, जिसके बाद जर्मन जेट्स रोस्टॉक-लागे एयर बेस पर लौट आए।
यह घटना एस्टोनिया द्वारा रूसी मिग-31 लड़ाकू विमानों द्वारा अपने हवाई क्षेत्र के उल्लंघन की रिपोर्ट के कुछ ही दिनों बाद हुई है। 19 सितंबर, 2025 को, तीन रूसी मिग-31 लड़ाकू विमानों ने एस्टोनियाई हवाई क्षेत्र में लगभग 12 मिनट तक उड़ान भरी, जिससे एस्टोनिया ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाई। एस्टोनिया के विदेश मंत्री मार्गस त्साह्कना ने इस उल्लंघन को "अभूतपूर्व रूप से दुस्साहसी" बताया और कहा कि यह रूस द्वारा क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर बढ़ते तनाव का हिस्सा है।
इसी तरह की घटनाएं पोलैंड और रोमानिया में भी हुई हैं, जहां रूसी ड्रोन और विमानों ने उनके हवाई क्षेत्रों का उल्लंघन किया है। इन घटनाओं के जवाब में, नाटो ने अपनी पूर्वी सीमा पर सतर्कता बढ़ा दी है और "ईस्टर्न सेंट्री" मिशन लॉन्च किया है। नाटो के सदस्य देशों ने रूस के इस तरह के व्यवहार को अपनी सुरक्षा के लिए एक चुनौती माना है और निर्णायक प्रतिक्रिया की मांग की है। चेक राष्ट्रपति पेट्र पावेल ने कहा कि नाटो को रूसी उकसावों का निर्णायक रूप से जवाब देना चाहिए, जिसमें यदि आवश्यक हो तो रूसी सैन्य विमानों को मार गिराना भी शामिल है।
बाल्टिक सागर क्षेत्र में इस तरह की घटनाएं रूस की अपनी सैन्य क्षमताओं का प्रदर्शन करने और नाटो की प्रतिक्रियाओं को परखने की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि रूस जानबूझकर नाटो की तत्परता और प्रतिक्रिया समय का परीक्षण कर रहा है। यह स्थिति बाल्टिक क्षेत्र को रूस और नाटो के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव का एक प्रमुख केंद्र बनाती है।