2025 की i2B आर्कटिक महासागर अभियान वर्तमान में जारी है, जिसमें आर/वी क्रोनप्रिंस हाकोन पर 25 वैज्ञानिक सवार हैं। उनका मिशन पिछले अंतर-हिमनद अवधियों, विशेष रूप से 130,000 और 400,000 साल पहले की आर्कटिक जलवायु स्थितियों के पुनर्निर्माण के लिए तलछट कोर एकत्र करना है। यह शोध इन गर्म समयों के दौरान मौसमी रूप से समुद्री-बर्फ-मुक्त आर्कटिक महासागर के प्रभाव को समझने का लक्ष्य रखता है। इन प्राचीन अभिलेखों की तुलना आधुनिक अवलोकनों और जलवायु मॉडल से करके, परियोजना यह निर्धारित करने का प्रयास करती है कि क्या आर्कटिक एक समान महत्वपूर्ण बिंदु के करीब पहुंच रहा है।
यह अभूतपूर्व अनुसंधान यूआईटी द आर्कटिक यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्वे और अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट सहित कई प्रमुख यूरोपीय संस्थानों के शोधकर्ताओं को एक साथ लाता है। यह महत्वपूर्ण शोध इस बात पर महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा कि आर्कटिक जलवायु प्रणाली गर्म होने पर कैसे प्रतिक्रिया करती है, जो वर्तमान जलवायु परिवर्तन की हमारी समझ के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ प्रदान करता है। अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट (एडब्ल्यूआई) आर्कटिक और अंटार्कटिक के साथ-साथ उच्च और मध्य अक्षांश महासागरों में अनुसंधान करता है, और जर्मन ध्रुवीय अनुसंधान का समन्वय करता है। यूआईटी, द आर्कटिक यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्वे, दुनिया का सबसे उत्तरी विश्वविद्यालय है और आर्कटिक अनुसंधान में नॉर्वे का सबसे प्रमुख विश्वविद्यालय है, जो जलवायु परिवर्तन के गहन प्रभावों का अध्ययन करता है।
वैज्ञानिकों ने पिछले जलवायु को समझने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग किया है, जिनमें आइस कोर, तलछट कोर और पेड़ के छल्ले शामिल हैं। ये प्रॉक्सी डेटा हमें प्राचीन वायुमंडल की संरचना, तापमान और वर्षा के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, आइस कोर में फंसी हवा के बुलबुले हमें प्राचीन वायुमंडल की संरचना का विश्लेषण करने की अनुमति देते हैं, जबकि तलछट कोर में माइक्रोफोसिल और रसायन शास्त्र हमें पिछले समुद्री बर्फ की स्थिति और महासागर के तापमान के बारे में बता सकते हैं। पेड़ के छल्ले हमें पिछले तापमान और वर्षा के पैटर्न के बारे में जानकारी दे सकते हैं।
यह अभियान आर्कटिक के अतीत की जलवायु को समझने के लिए महत्वपूर्ण है, जो हमें वर्तमान और भविष्य के जलवायु परिवर्तन के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है। यह शोध हमें यह समझने में मदद करेगा कि आर्कटिक गर्म होने पर कैसे प्रतिक्रिया करता है और यह हमारे ग्रह को कैसे प्रभावित कर सकता है। अभियान 16 अगस्त से 19 सितंबर 2025 तक चलेगा।