आर्कटिक महासागर अभूतपूर्व दर से गर्म हो रहा है, जो वैश्विक औसत से लगभग तीन गुना तेज है। हालिया शोध 'अट्लान्टिफिकेशन' नामक प्रक्रिया को उजागर करता है, जिसमें अटलांटिक महासागर के गर्म और खारे पानी का आर्कटिक समुद्री वातावरण पर बढ़ता प्रभाव देखा जा रहा है। यह प्रक्रिया, जो पूर्व-औद्योगिक काल में शुरू हुई थी, के 2060 के आसपास चरम पर पहुंचने की उम्मीद है, जिससे आर्कटिक की नाजुक जलवायु प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव आ रहे हैं।
वर्ष 2024 वैश्विक तापमान के लिए एक रिकॉर्ड वर्ष साबित हुआ, जो पिछले वर्ष के रिकॉर्ड को पार कर गया। नासा के वैज्ञानिकों के विश्लेषण के अनुसार, 2024 में पृथ्वी का औसत सतह तापमान 1951-1980 की अवधि के औसत से 1.28 डिग्री सेल्सियस अधिक था। यह लगातार 15 महीनों (जून 2023 से अगस्त 2024) तक मासिक तापमान रिकॉर्ड टूटने का परिणाम है। यह अभूतपूर्व गर्मी की लहर आर्कटिक में तेजी से बर्फ पिघलने और समुद्र के स्तर में वृद्धि से जुड़ी है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि आर्कटिक महासागर 2027 तक अपने पहले 'बर्फ-मुक्त' ग्रीष्मकाल का अनुभव कर सकता है, जब समुद्री बर्फ का क्षेत्र 1 मिलियन वर्ग किलोमीटर से नीचे चला जाएगा।
अट्लान्टिफिकेशन का प्रभाव केवल तापमान तक ही सीमित नहीं है। गर्म अटलांटिक जल के प्रवेश से आर्कटिक महासागर की लवणता बढ़ रही है और समुद्री बर्फ का पिघलना तेज हो रहा है। यह प्रक्रिया, जिसे 'हैलोक्लाइन' के कमजोर होने से बल मिलता है, अटलांटिक के गर्म पानी को सतह तक पहुंचने और बर्फ को नीचे से पिघलाने की अनुमति देती है। इसके परिणामस्वरूप, आर्कटिक में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र भी बदल रहा है। अटलांटिक से आने वाली प्रजातियां उत्तर की ओर बढ़ रही हैं, जबकि आर्कटिक की मूल प्रजातियां पीछे हट रही हैं। उदाहरण के लिए, अटलांटिक कॉड अब आर्कटिक के उन क्षेत्रों में पाए जा रहे हैं जहां पहले कभी नहीं देखे गए थे।
वैज्ञानिकों का मानना है कि अट्लान्टिफिकेशन आर्कटिक जलवायु प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह न केवल समुद्री बर्फ के पिघलने को तेज करता है, बल्कि महासागरों के बीच गर्मी और लवणता के आदान-प्रदान को भी बदलता है। 2024 में महासागरों में गर्मी की मात्रा रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई, जो इस बात का प्रमाण है कि महासागर पृथ्वी की अतिरिक्त गर्मी का 90% हिस्सा संग्रहीत कर रहे हैं। यह स्थिति आर्कटिक के भविष्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह वैश्विक जलवायु पैटर्न को भी प्रभावित कर सकती है।