वैज्ञानिकों ने दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित जलमग्न महाद्वीप ज़ीलैंडिया का व्यापक मानचित्रण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि, जो जनवरी 2025 तक पूरी होने की उम्मीद थी, इस छिपे हुए भूभाग के भूवैज्ञानिक इतिहास और विवर्तनिक प्रक्रियाओं की समझ में एक नया अध्याय जोड़ेगी। ज़ीलैंडिया, जिसे माओरी भाषा में ते रिऊ-ए-माउई के नाम से भी जाना जाता है, लगभग 300 मिलियन वर्षों तक सुपरकॉन्टिनेंट गोंडवाना का हिस्सा रहा था। यह लगभग 1.9 मिलियन वर्ग मील के क्षेत्र को कवर करता है, जिसमें से 95% से अधिक हिस्सा पानी के नीचे डूबा हुआ है। न्यूजीलैंड और न्यू कैलेडोनिया इसके केवल दृश्यमान हिस्से हैं।
इस विस्तृत मानचित्रण से ज़ीलैंडिया के निर्माण और जलमग्न होने के कारणों पर नई जानकारी मिलने की उम्मीद है। वैज्ञानिकों ने इस छिपी हुई पृथ्वी की पपड़ी के हिस्सों की सीमाओं को रेखांकित किया है, जिससे इसके भूवैज्ञानिक अतीत और विकास को समझने में मदद मिलेगी। ज़ीलैंडिया के मानचित्रण से इस क्षेत्र में पौधों और जानवरों के प्रवासन पर भी नए दृष्टिकोण प्राप्त होंगे, क्योंकि अतीत में यह क्षेत्र समुद्री जल और ज्वालामुखीय गतिविधि से अलग-थलग था, जिसने विभिन्न प्रजातियों के विकास को सक्षम बनाया। यह कार्य भूविज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है, जो हमारे ग्रह के प्राचीन अतीत और इसके चल रहे भूवैज्ञानिक विकास को समझने के लिए नए अवसर प्रदान करता है। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि ज़ीलैंडिया का निर्माण लगभग 100 मिलियन वर्ष पहले गोंडवाना के टूटने के परिणामस्वरूप शुरू हुआ था। 2023 में, वैज्ञानिकों ने ज़ीलैंडिया के भूविज्ञान, ज्वालामुखियों और तलछटी घाटियों का पूरी तरह से मानचित्रण पूरा कर लिया, जिससे यह पृथ्वी का पहला पूरी तरह से मैप किया गया महाद्वीप बन गया। इस मानचित्रण से ज़ीलैंडिया की प्राचीन रीढ़ की हड्डी और न्यूजीलैंड के आकार के एक विशाल ज्वालामुखीय क्षेत्र का पता चला है।