अंटार्कटिका के लिटिल डोम सी (Little Dome C) में एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक दल ने 2.8 किलोमीटर की गहराई तक ड्रिलिंग करके 12 लाख साल से भी अधिक पुरानी बर्फ का नमूना सफलतापूर्वक प्राप्त किया है। यह उपलब्धि 'बियॉन्ड एपिका' (Beyond EPICA) परियोजना का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य पृथ्वी के वायुमंडलीय और जलवायु इतिहास की विस्तृत समझ विकसित करना है। इस परियोजना का नेतृत्व इटली के नेशनल रिसर्च काउंसिल के पोलर साइंसेज इंस्टीट्यूट के कार्लो बार्बेंटे कर रहे हैं।
यह प्राचीन बर्फ का नमूना, जिसे एक 'टाइम कैप्सूल' माना जा रहा है, उस काल की जलवायु के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी रखता है। इसमें फंसी हवा के बुलबुले उस समय के वातावरण, ग्रीनहाउस गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन, धूल के कणों और ज्वालामुखी की राख के बारे में जानकारी प्रदान करेंगे। यह खोज विशेष रूप से 'मिड-प्लीस्टोसीन ट्रांज़िशन' (Mid-Pleistocene Transition) नामक भूवैज्ञानिक काल पर प्रकाश डालेगी। यह वह समय था जब पृथ्वी के हिमयुग चक्रों का पैटर्न 41,000 साल से बदलकर 100,000 साल का हो गया था, और इस बदलाव के कारणों को समझना जलवायु विज्ञान के लिए एक बड़ी पहेली है।
इस महत्वपूर्ण कार्य में 10 देशों के 16 वैज्ञानिकों और सहायक कर्मचारियों की टीम ने चार ग्रीष्मकाल तक अत्यंत कठिन परिस्थितियों में काम किया। इस प्राचीन बर्फ के नमूने का विश्लेषण धीरे-धीरे पिघलाकर प्रत्येक परत की रासायनिक संरचना को मापकर किया जाएगा। इस शोध से प्राप्त डेटा का उपयोग वर्तमान जलवायु परिवर्तन के मॉडलों को बेहतर बनाने और भविष्य के जलवायु परिवर्तनों का अनुमान लगाने में किया जाएगा। यह समझना महत्वपूर्ण है कि लाखों साल पहले, जब ग्रीनहाउस गैसों का स्तर आज के समान था, तब पृथ्वी का जलवायु व्यवहार अलग क्यों था।
यह खोज शोधकर्ताओं को वर्तमान जलवायु परिवर्तन के पीछे के कारकों को बेहतर ढंग से समझने में सहायता करेगी। इस प्राचीन बर्फ के नमूने का विश्लेषण पृथ्वी के भूवैज्ञानिक इतिहास को समझने और भविष्य की जलवायु नीतियों को अधिक प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।