वैज्ञानिकों ने थूकने वाले कोबरा की एक ऐसी प्रजाति के अस्तित्व की पुष्टि की है जिसके बारे में पहले जानकारी नहीं थी। इस नई प्रजाति को वैज्ञानिक नाम Hemachatus nyangensis दिया गया है। यह पहचान इसलिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि इसे संभव बनाने में आनुवंशिक विश्लेषण की उन्नत तकनीकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा, जिसे ज़िम्बाब्वे के संग्रहालय में 1982 से रखे गए एक मात्र नमूने पर लागू किया गया। संग्रहालय के जीनोमिक्स पर आधारित यह अभूतपूर्व खोज इस बात पर प्रकाश डालती है कि अफ्रीकी महाद्वीप पर जीवन की कितनी विविधता अभी भी हमारे ज्ञान से परे, छिपी हुई है। यह दर्शाता है कि दशकों पुराने संग्रह भी आधुनिक विज्ञान के लिए कितने मूल्यवान हो सकते हैं।
ब्रिटेन के बैंगोर विश्वविद्यालय के टॉम मेजर सहित शोधकर्ताओं की टीम ने यह स्थापित किया कि यह रिंखाल (गले में रिंग वाला थूकने वाला कोबरा) एक "पुरानी और अत्यधिक विशिष्ट वंशावली" का प्रतिनिधित्व करता है, जो लाखों वर्षों से स्वतंत्र रूप से विकसित हो रही है। आनुवंशिक विश्लेषण से पता चला कि H. nyangensis अपने दक्षिणी रिश्तेदारों, H. haemachatus, से लगभग 70 लाख से 1 करोड़ 40 लाख वर्ष पहले अलग हो गया था। यह विभाजन भूवैज्ञानिक समय के पैमाने पर एक महत्वपूर्ण घटना थी। संग्रहालय के संग्रह से प्राप्त यह नमूना अल्कोहल में संरक्षित किया गया था, जिसके कारण आनुवंशिक सामग्री (डीएनए) का काफी क्षरण हो गया था। इस चुनौती के बावजूद, वैज्ञानिकों ने प्राचीन डीएनए पर काम करने के लिए उपयोग की जाने वाली अत्याधुनिक तकनीकों का सहारा लेते हुए आवश्यक डीएनए अनुक्रम प्राप्त करने में सफलता हासिल की, जिससे इस प्रजाति का वर्गीकरण संभव हो पाया।
H. nyangensis की जानकारी केवल इसी एक ऐतिहासिक नमूने के आधार पर है, जिसे ज़िम्बाब्वे के पूर्वी हाइलैंड्स क्षेत्र में एकत्र किया गया था। यह क्षेत्र जैव विविधता और स्थानिक प्रजातियों (endemism) का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जिसका अर्थ है कि यहाँ पाए जाने वाले जीव कहीं और नहीं मिलते। इस प्रजाति के जीवित सदस्य को अंतिम बार 1980 के दशक में जंगल में देखा गया था, जिससे इसकी वर्तमान स्थिति पर गंभीर संदेह पैदा होता है। शोधकर्ताओं ने इस प्रजाति के पूर्ण रूप से विलुप्त होने की गंभीर आशंकाएं व्यक्त की हैं, जिसका मुख्य कारण क्षेत्र में कृषि और अन्य विकास कार्यों के लिए भूमि उपयोग में आए नाटकीय परिवर्तन हैं। यह खोज हमें याद दिलाती है कि हम कितनी तेज़ी से ऐसी प्रजातियों को खो रहे हैं जिनके बारे में हमें पूरी तरह से पता भी नहीं चला है, और इसलिए प्राकृतिक आवासों के संरक्षण की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि कोबरा में विष थूकने की क्षमता को माना जाता है कि यह तीन अलग-अलग विकासात्मक वंशावलियों में स्वतंत्र रूप से विकसित हुई है। यह अभिसारी विकास (convergent evolution) का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह रक्षात्मक तंत्र शुरुआती होमिनिड्स (मानव पूर्वज) की उपस्थिति के जवाब में विकसित हुआ होगा, क्योंकि उनके सीधे खड़े होने के कारण आँखें अधिक सुलभ और कमजोर लक्ष्य बन गईं थीं। थूकने वाले कोबरा का विष काटने वाले साँपों के विष से संरचनात्मक रूप से भिन्न होता है। इसमें फॉस्फोलिपेज़ ए2 (Phospholipase A2) नामक प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। यह घटक तीव्र दर्द पैदा करता है और यदि आँख में चला जाए तो अंधापन ला सकता है। इस प्रकार, यह रक्षात्मक उपकरण शिकार को मारने के बजाय हमलावर को तत्काल डराने और पीछे हटाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
इस नई पहचान के बावजूद, H. nyangensis का भविष्य अभी भी अनिश्चितता के घेरे में है। वैज्ञानिकों ने यह पता लगाने के लिए तत्काल कदम उठाने का आह्वान किया है कि क्या इसकी कोई आबादी अभी भी ज़िम्बाब्वे के दुर्गम क्षेत्रों में बची हुई है। इसके साथ ही, ज़िम्बाब्वे के शेष अद्वितीय पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्रों की सुरक्षा करना भी आवश्यक है, जहाँ यह प्रजाति संभवतः निवास करती थी। यह महत्वपूर्ण खोज हमें जीवन के प्रत्येक रूप के मूल्य और विश्व की जैव विविधता को संरक्षित करने की हमारी जिम्मेदारी के बारे में गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करती है। यह हमें सिखाता है कि संग्रहालयों में रखी गई वस्तुएं भी आधुनिक युग की सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोजों का आधार बन सकती हैं और संरक्षण प्रयासों को नई दिशा दे सकती हैं।