15 अगस्त, 2025 को, कोरिया की स्वतंत्रता की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे-म्युंग ने जापान को दक्षिण कोरिया के आर्थिक विकास के लिए एक 'अनिवार्य भागीदार' घोषित किया। यह घोषणा उनके पिछले आलोचनात्मक रुख से एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देती है। राष्ट्रपति ली का यह कदम जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के साथ आगामी शिखर सम्मेलन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ एक बैठक की पृष्ठभूमि में आया है, जिसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय सहयोग और स्थिरता को बढ़ावा देना है। राष्ट्रपति ली ने 19 सितंबर, 2018 को उत्तर कोरिया के साथ हुए व्यापक सैन्य समझौते को बहाल करने की योजना का भी खुलासा किया, जिसका लक्ष्य सीमा पर तनाव को कम करना है। यह समझौता मूल रूप से 2018 में हस्ताक्षरित हुआ था, लेकिन हाल के वर्षों में तनाव बढ़ने के कारण यह प्रभावी रूप से समाप्त हो गया था। राष्ट्रपति ली का यह कदम प्योंगयांग के साथ फिर से जुड़ने और सीमा पार की शत्रुता को कम करने की दिशा में एक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब दक्षिण कोरिया और जापान के बीच राजनयिक संबंध एक नए चरण में प्रवेश कर रहे हैं। जून 2025 में कनाडा में जी7 शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति ली और प्रधानमंत्री इशिबा की प्रारंभिक मुलाकात के बाद, दोनों नेताओं ने शटल कूटनीति को फिर से शुरू करने पर सहमति व्यक्त की थी। राष्ट्रपति ली की जापान यात्रा, जो 23-24 अगस्त, 2025 को टोक्यो में निर्धारित है, इस कूटनीतिक आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके तुरंत बाद, 25 अगस्त, 2025 को, राष्ट्रपति ली वाशिंगटन डी.सी. में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मिलेंगे। इन बैठकों का उद्देश्य न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना है, बल्कि अमेरिका के साथ त्रिपक्षीय सहयोग को भी बढ़ाना है, जो कि एक बदलती वैश्विक व्यवस्था में क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। राष्ट्रपति ली का यह नया दृष्टिकोण, ऐतिहासिक शिकायतों को स्वीकार करते हुए वर्तमान और भविष्य के सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने का एक सचेत प्रयास दर्शाता है। यह कदम पूर्वी एशिया के जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य को नेविगेट करने में राष्ट्रपति ली की व्यावहारिक कूटनीति के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। जापान को एक 'अनिवार्य भागीदार' के रूप में स्वीकार करना और उत्तर कोरिया के साथ सैन्य समझौते को बहाल करने की पहल, दोनों ही क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक प्रगति के लिए एक व्यापक रणनीति का हिस्सा हैं। यह दर्शाता है कि कैसे राष्ट्र अपने साझा भविष्य को आकार देने के लिए अतीत से आगे बढ़कर सहयोग के नए रास्ते तलाश रहे हैं।