वर्ष 2025 में, यूरोप इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के लिए सेल्फ-हीलिंग बैटरी के विकास में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है। यह तकनीक न केवल ड्राइविंग रेंज को बढ़ाने का वादा करती है, बल्कि ड्राइवरों के लिए लागत कम करने और शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी मदद करती है। यूरोप में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में लगातार वृद्धि देखी जा रही है, लेकिन बैटरी का ख़राब होना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। सेल्फ-हीलिंग बैटरी इस समस्या का समाधान कर सकती हैं, क्योंकि ये अपनी स्थिति का स्वयं पता लगा सकती हैं और खराबी आने से पहले ही मरम्मत प्रक्रिया शुरू कर सकती हैं।
यूरोपीय संघ द्वारा वित्त पोषित PHOENIX प्रोजेक्ट के तहत, बेल्जियम, जर्मनी, इटली, स्पेन और स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक सेल्फ-हीलिंग बैटरी के पहले प्रोटोटाइप का परीक्षण कर रहे हैं। इन बैटरियों में लगे उन्नत सेंसर वोल्टेज, करंट, तापमान और बैटरी के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों की निगरानी करते हैं। जब सिस्टम को मरम्मत की आवश्यकता महसूस होती है, तो यह एक प्रक्रिया शुरू करता है, जैसे कि सामग्री के भीतर रासायनिक बंधों को बहाल करने के लिए लक्षित हीटिंग या शॉर्ट सर्किट का कारण बनने वाले डेंड्राइट्स को तोड़ने के लिए चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करना।
यदि यह तकनीक सफल होती है, तो बैटरियां दोगुनी लंबी चल सकती हैं, जिससे स्वामित्व की लागत कम होगी और लिथियम, निकल और कोबाल्ट जैसी कीमती धातुओं की खपत भी घटेगी। शोधकर्ता बैटरी की क्षमता बढ़ाने के लिए नई सामग्रियों पर भी काम कर रहे हैं। ग्रेफाइट के बजाय सिलिकॉन का उपयोग ऊर्जा भंडारण को बढ़ा सकता है, हालांकि सिलिकॉन चार्जिंग के दौरान 300% तक फैल सकता है। सेल्फ-हीलिंग क्षमता इस चुनौती का समाधान कर सकती है, जिससे छोटी, हल्की और उच्च ऊर्जा घनत्व वाली बैटरियां बनेंगी।
यूरोपीय संघ ने 2035 से केवल शून्य-उत्सर्जन वाले वाहनों की बिक्री को अनिवार्य करने वाले कानून पहले ही बना दिए हैं। इस परिवर्तन को सुचारू बनाने के लिए, निर्माताओं को बैटरी की लागत, जीवनकाल और पर्यावरणीय प्रभाव से संबंधित मुद्दों को हल करना होगा। सेल्फ-हीलिंग बैटरी इन सभी मोर्चों पर समाधान प्रदान करती हैं। PHOENIX प्रोजेक्ट का नाम पौराणिक पक्षी फीनिक्स के नाम पर रखा गया है, जो राख से पुनर्जन्म लेता है, जो बैटरियों की स्वयं को पुनर्जीवित करने और कार्यशील बने रहने की क्षमता का प्रतीक है।
इस प्रोजेक्ट में शामिल वैज्ञानिक, जैसे कि जर्मनी के फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट फॉर सोलर एनर्जी सिस्टम्स के जोहान्स ज़िग्लर, का लक्ष्य बैटरी के जीवनकाल को बढ़ाना और कार्बन फुटप्रिंट को कम करना है। स्विस सेंटर फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड माइक्रो टेक्नोलॉजी के इंजीनियर यवेस स्टॉफर का कहना है कि उनका लक्ष्य एक ऐसी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली लागू करना है जो समस्या गंभीर होने से पहले प्रतिक्रिया कर सके। हालांकि सेल्फ-हीलिंग बैटरी का विचार कुछ साल पहले तक अवास्तविक लगता था, अब वास्तविक प्रोटोटाइप का परीक्षण किया जा रहा है। यदि यह सफल होता है, तो यह अगले दशक में मानक बन सकता है।
ड्राइवरों के लिए, इसका मतलब बैटरी के तेजी से खराब होने की चिंता का अंत होगा। ऑटोमोटिव निर्माताओं के लिए, यह अधिक आकर्षक और पर्यावरण के अनुकूल मॉडल पेश करने का अवसर है। पर्यावरण के लिए, यह इलेक्ट्रोमोबिलिटी में परिवर्तन को न केवल तेज बल्कि टिकाऊ बनाने का एक मौका है। यह तकनीक इलेक्ट्रिक वाहनों को विश्वसनीयता के एक नए स्तर पर ले जा सकती है।