बीजिंग, चीन - चीनी कंपनी काईवा टेक्नोलॉजी ने एक अभूतपूर्व घोषणा की है, जिसमें उन्होंने एक ऐसे ह्यूमनॉइड रोबोट का विकास किया है जिसमें कृत्रिम गर्भ (artificial womb) लगा हुआ है। यह रोबोट गर्भावस्था और प्रसव की प्रक्रिया का अनुकरण करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। कंपनी का लक्ष्य 2026 तक इस रोबोट को लॉन्च करना है, जिसकी अनुमानित कीमत 100,000 युआन (लगभग $13,900) से कम होगी। इस अवधारणा को 2025 में बीजिंग में आयोजित वर्ल्ड रोबोट कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किया गया था।
काईवा टेक्नोलॉजी के संस्थापक, झांग किफेंग, जो नैनयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से भी जुड़े हैं, ने इस रोबोट के बारे में विस्तार से बताया। रोबोट के पेट में एक कृत्रिम गर्भ होगा, जिसमें भ्रूण कृत्रिम एमनियोटिक द्रव में विकसित होगा और एक ट्यूब के माध्यम से पोषण प्राप्त करेगा, जो नाल (umbilical cord) की तरह काम करेगा। यह तकनीक उन जोड़ों के लिए एक नया रास्ता खोल सकती है जो बांझपन से जूझ रहे हैं या जो जैविक गर्भावस्था के बोझ से बचना चाहते हैं।
इस नवाचार ने दुनिया भर में नैतिक और कानूनी पहलुओं पर एक व्यापक बहस छेड़ दी है। कुछ विशेषज्ञों ने इस तकनीक के संभावित मनोवैज्ञानिक प्रभावों पर चिंता जताई है, खासकर उन बच्चों पर जो इस तरह से पैदा होंगे। चीन में प्रजनन प्रौद्योगिकियों पर कड़े नियंत्रण हैं, और इस तरह की तकनीक के लिए मौजूदा कानूनों में महत्वपूर्ण बदलावों की आवश्यकता होगी। काईवा टेक्नोलॉजी पहले से ही ग्वांगडोंग प्रांतीय अधिकारियों के साथ विधायी परिवर्तनों पर चर्चा कर रही है।
यह विकास रोबोटिक्स और जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण छलांग का प्रतिनिधित्व करता है। इसी सम्मेलन में, फसल परागण के लिए पहला इंटेलिजेंट रोबोट भी प्रस्तुत किया गया था, जो एआई और जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करके पौधों के परागण, आनुवंशिक कोड संशोधन और नई संकर प्रजातियों के निर्माण में स्वायत्त रूप से काम करेगा। यह रोबोटिक्स और जैव प्रौद्योगिकी में नवाचार की व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाता है। हालांकि यह तकनीक बांझपन के उपचार में क्रांति ला सकती है, लेकिन इसके दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव, साथ ही समाज द्वारा इसकी स्वीकृति और विनियमन महत्वपूर्ण विचारणीय विषय बने रहेंगे। यह तकनीक न केवल प्रजनन चिकित्सा के भविष्य पर प्रकाश डालती है, बल्कि मानव जीवन और मातृत्व की प्रकृति के बारे में भी गहन प्रश्न उठाती है।