बर्सा ने हाल ही में खाद्य बिंदु मेले और तुरफूड होरेका मेले की मेजबानी की, जिसने प्रसंस्कृत, जमे हुए और पैक किए गए खाद्य पदार्थों के साथ-साथ उत्पादन और पैकेजिंग प्रौद्योगिकियों में हुए नए विकासों को प्रदर्शित किया। यह आयोजन खाद्य क्षेत्र के रणनीतिक महत्व को रेखांकित करता है, जो पारंपरिक सिंचाई विधियों से आगे बढ़कर कृषि में प्रौद्योगिकी और डिजिटल ट्रैकिंग को एकीकृत करने की आवश्यकता पर बल देता है। अधिकारियों ने जोर दिया कि बर्सा का लक्ष्य अपनी मजबूत कृषि और औद्योगिक नींव का लाभ उठाते हुए प्रौद्योगिकी और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करके एक क्षेत्रीय खाद्य केंद्र के रूप में स्थापित होना है।
यह परिवर्तन एक नए युग का संकेत है जहाँ उत्पादन की हर कड़ी में जागरूकता और सटीकता आवश्यक है। यह प्रयास केवल निर्यात क्षमता को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे स्थानीय पहचान उन्नत प्रणालियों के साथ वैश्विक मंच पर सामंजस्य बिठा सकती है। यह एक ऐसा अवसर है जहाँ पुरानी पद्धतियों को नई समझ के साथ रूपांतरित किया जा रहा है।
वैश्विक स्तर पर, डिजिटल कृषि मिशन जैसी पहलें, जिनका उद्देश्य किसानों को सशक्त बनाना और कृषि मूल्य श्रृंखला में निर्णय लेने की प्रक्रिया को बेहतर बनाना है, इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। भारत सरकार ने डिजिटल कृषि मिशन 2021-2025 के तहत 2,817 करोड़ रुपये का निवेश किया है, जो डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के आधार पर विकसित किया जा रहा है। इस मिशन का एक मुख्य स्तंभ 'एग्री-स्टैक' है, जो किसानों के लिए एक डिजिटल पहचान मंच बनाता है, जिससे सरकारी योजनाओं और सेवाओं का वितरण सुव्यवस्थित होता है।
यह नवाचार केवल बड़े पैमाने पर नहीं हो रहा है; रिमोट सेंसिंग और एज-ऑफ-फील्ड मॉनिटरिंग में प्रगति से उच्च-रिज़ॉल्यूशन डेटा प्राप्त हो रहा है, जो फसल स्वास्थ्य, तनाव की निगरानी और कृषि प्रबंधन क्रियाओं पर समय पर जानकारी प्रदान करता है। यह डेटा-संचालित दृष्टिकोण किसानों को बेहतर जोखिम प्रबंधन और बाजार तक बेहतर पहुंच प्रदान करता है, जिससे कृषि उत्पादकता और स्थिरता बढ़ती है।
इस प्रकार, बर्सा में हुए ये आयोजन और वैश्विक स्तर पर हो रहे डिजिटल परिवर्तन, दोनों ही एक ही सत्य की ओर इशारा करते हैं: वर्तमान समय में सफलता के लिए आंतरिक स्पष्टता और बाहरी प्रणालियों के साथ सहज एकीकरण आवश्यक है। खाद्य क्षेत्र का भविष्य अब केवल उत्पादन की मात्रा पर नहीं, बल्कि उस बुद्धिमत्ता पर निर्भर करता है जिसके साथ हम संसाधनों का प्रबंधन करते हैं और सहयोग के नए रास्ते खोजते हैं।
