पोलैंड की जानी-मानी निर्देशक अग्निज़्का हॉलैंड की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'फ्रांज़' का 50वें गोर्डिनिया फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर हुआ। यह फिल्म युवा फ्रांज़ काफ्का के जीवन पर आधारित है, जो नौकरशाही की जटिलताओं और अस्तित्व संबंधी संकटों से जूझते हैं। इस चेक-पोलिश-जर्मन सह-उत्पादन में काफ्का का किरदार इदान वीस ने निभाया है, जिनके प्रदर्शन की हॉलैंड ने 'चमत्कार' कहकर प्रशंसा की है। उन्होंने वीस को वर्तमान पीढ़ी का एक आदर्श प्रतिनिधित्व बताया।
टॉरोन्टो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में विश्व प्रीमियर के बाद, 'फ्रांज़' को ऑस्कर में सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म श्रेणी के लिए पोलैंड की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया है। यह फिल्म 24 अक्टूबर, 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज़ होने वाली है और अंतरराष्ट्रीय फिल्म जगत पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने के लिए तैयार है। फिल्म का छायांकन तोमाज़ नौमियुक ने किया है और इसने प्रतिष्ठित सिल्वर लायन पुरस्कार के लिए प्रतिस्पर्धा की।
फ्रांज़ काफ्का, जिनका जन्म 3 जुलाई, 1883 को प्राग में हुआ था, 20वीं सदी के साहित्य के एक प्रमुख व्यक्ति माने जाते हैं। उनकी रचनाएँ, जैसे 'द मेटामॉर्फोसिस' और 'द ट्रायल', आज भी पाठकों को अपनी जटिलताओं और अस्तित्ववादी विषयों से आकर्षित करती हैं। हॉलैंड की फिल्म काफ्का के जीवन के उन पहलुओं को उजागर करती है जो उनकी रचनाओं की प्रेरणा बने। फिल्म काफ्का के पिता के साथ उनके जटिल संबंधों और उस समय के सामाजिक-नौकरशाही दबावों को भी दर्शाती है, जिसने उनके जीवन और लेखन को गहराई से प्रभावित किया।
गोर्डिनिया फिल्म फेस्टिवल, जो 22 से 27 सितंबर, 2025 तक आयोजित किया गया, पोलिश सिनेमा का एक महत्वपूर्ण मंच है। यह फेस्टिवल 1974 से आयोजित हो रहा है और इसे पोलिश सिनेमा के सबसे महत्वपूर्ण प्रदर्शनों में से एक माना जाता है। इस वर्ष के फेस्टिवल में 'फ्रांज़' के अलावा 15 अन्य फिल्मों ने मुख्य प्रतियोगिता में भाग लिया, जिसमें 'चोपिन, चोपिन' जैसी फिल्में भी शामिल थीं।
अग्निज़्का हॉलैंड काफ्का के प्रति अपने गहरे लगाव के लिए जानी जाती हैं, उन्होंने पहले भी काफ्का की 'द ट्रायल' को पोलिश टेलीविजन के लिए रूपांतरित किया था। 'फ्रांज़' का ऑस्कर के लिए चुना जाना पोलिश सिनेमा के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। पोलैंड ने पहले भी 'इडा' (2015) जैसी फिल्मों के साथ ऑस्कर में सफलता प्राप्त की है। यह फिल्म न केवल काफ्का के जीवन की एक झलक पेश करती है, बल्कि उस समय की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर भी प्रकाश डालती है, जिसने काफ्का जैसे लेखकों को प्रभावित किया। फिल्म की कहानी युवा फ्रांज़ के संघर्षों को दर्शाती है, जो आज की पीढ़ी के लिए भी प्रासंगिक हो सकती है, क्योंकि यह व्यक्तिगत पहचान और व्यवस्था के साथ संघर्ष के सार्वभौमिक विषयों को छूती है।