अफ्रीकी वायलेट के फूलों के रंग पैटर्न को नियंत्रित करने वाले जीन की पहचान

द्वारा संपादित: Vera Mo

जापान के किंडाई विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मुनेटाका होसोकावा और डॉ. दाइची कुराटा के नेतृत्व में हुए हालिया शोध ने अफ्रीकी वायलेट (Saintpaulia ionantha) के फूलों के रंग पैटर्न को नियंत्रित करने वाले एक महत्वपूर्ण जीन, SiMYB2, की पहचान की है। यह खोज फूलों के रंग के लिए पहले से प्रचलित चिमेरा (chimera) सिद्धांतों को चुनौती देती है और बताती है कि रंग के विभिन्न शेड्स और पैटर्न एक विशिष्ट जीन के नियंत्रण से उत्पन्न होते हैं।

अफ्रीकी वायलेट अपने विविध और आकर्षक फूलों के रंगों के लिए जाने जाते हैं। ऐतिहासिक रूप से, सफेद धारियों वाले फूलों को पेरीक्लिनल चिमेरा का परिणाम माना जाता था, जहाँ आनुवंशिक रूप से भिन्न कोशिका परतें विभिन्न रंगों का निर्माण करती हैं। हालांकि, किंडाई विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि SiMYB2 जीन, जो एंथोसायनिन (anthocyanin) के संचय को नियंत्रित करता है, फूलों के रंगों के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है। शोध में पाया गया कि गुलाबी पंखुड़ियों में सफेद पंखुड़ियों की तुलना में एंथोसायनिन का स्तर अधिक होता है, और सफेद पंखुड़ियों में एंथोसायनिन जैवसंश्लेषण (biosynthesis) से जुड़े प्रमुख जीन दबे हुए पाए गए।

जीनोमिक अनुक्रमण (genomic sequencing) और विश्लेषण के माध्यम से, SiMYB2 को रंग अस्थिरता के लिए जिम्मेदार महत्वपूर्ण जीन के रूप में पहचाना गया। इस जीन के दो ट्रांसक्रिप्ट (transcripts) पाए गए: SiMYB2-Long, जो रंगीन ऊतकों में व्यक्त होता है, और SiMYB2-Short, जो रंगहीन ऊतकों में पाया जाता है। यह खोज अफ्रीकी वायलेट में सफेद-धारीदार पैटर्न के लिए पेरीक्लिनल चिमेरा के लंबे समय से चले आ रहे विश्वास को चुनौती देती है और विशिष्ट जीन विनियमन की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालती है।

प्रोफेसर होसोकावा ने इस शोध के व्यापक निहितार्थों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हालांकि मनुष्यों ने प्रजनन के लिए उत्परिवर्तन (mutations) का उपयोग किया है, लेकिन फूलों के पैटर्न की आनुवंशिक समझ अभी भी उभर रही है। उनका अनुमान है कि अगले पांच से दस वर्षों में, फूलों के पैटर्न की आनुवंशिकी की स्पष्ट समझ अधिक लक्षित प्रजनन कार्यक्रमों को सक्षम कर सकती है। इस ज्ञान का उपयोग करके, बागवानी विशेषज्ञ अधिक कुशलता से वांछित फूलों के रंग गुणों को प्राप्त कर सकते हैं। यह शोध अफ्रीकी वायलेट के रंगद्रव्यन (pigmentation) की हमारी समझ को गहरा करता है और अधिक लक्षित प्रजनन कार्यक्रमों का मार्ग प्रशस्त करता है।

किंडाई विश्वविद्यालय, जिसकी स्थापना 1949 में हुई थी, जापान के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में से एक है और कृषि विज्ञान तथा बागवानी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण अनुसंधान करता है। प्रोफेसर होसोकावा के कार्य को बागवानी अनुसंधान में उनके योगदान के लिए सराहा गया है, और इस अध्ययन को सासाकावा वैज्ञानिक अनुसंधान अनुदान (Sasakawa Scientific Research Grant) और किंडाई विश्वविद्यालय के कृषि प्रौद्योगिकी और नवाचार अनुसंधान संस्थान (Agricultural Technology and Innovation Research Institute) से अनुदान प्राप्त हुआ है।

स्रोतों

  • Innovations Report

  • Phys.org

  • EurekAlert!

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