नई दिल्ली: यमुना नदी के जलस्तर में खतरनाक वृद्धि देखी जा रही है, जिससे राजधानी के निचले इलाकों में बाढ़ का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। पुराने रेलवे ब्रिज पर नदी का जलस्तर 207.09 मीटर को पार कर गया है, जो खतरे के निशान 205.33 मीटर से काफी ऊपर है। यह स्थिति लगातार हो रही भारी बारिश और हथनीकुंड बैराज से छोड़े गए पानी की अधिक मात्रा का परिणाम है।
इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, अधिकारियों ने एहतियाती कदम उठाते हुए निचले इलाकों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर निकालना शुरू कर दिया है। अब तक 10,000 से अधिक लोगों को राहत शिविरों में स्थानांतरित किया जा चुका है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने दिल्ली के कई जिलों के लिए भारी बारिश का 'रेड अलर्ट' जारी किया है, जिससे नागरिकों को सतर्क रहने और सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन करने की सलाह दी गई है।
ऐतिहासिक आंकड़ों के अनुसार, यमुना नदी का 207 मीटर का स्तर पार करना एक दुर्लभ घटना है। पिछले 63 वर्षों में, यह स्तर केवल चार बार ही पार किया गया है, जिसमें 2023 की बाढ़ सबसे विनाशकारी थी, जब नदी का जलस्तर अभूतपूर्व रूप से 208.66 मीटर तक पहुंच गया था। वर्तमान जलस्तर की वृद्धि, विशेष रूप से हथनीकुंड बैराज से छोड़े गए पानी की भारी मात्रा (जो अक्सर 1 लाख क्यूसेक से अधिक रही है) के कारण, स्थिति की गंभीरता को दर्शाती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यमुना के बाढ़ के मैदानों पर बढ़ता अतिक्रमण भी इस समस्या को और गंभीर बना रहा है। इन बाढ़ के मैदानों का प्राकृतिक कार्य अतिरिक्त पानी को सोखना होता है, लेकिन अवैध निर्माण और शहरीकरण ने नदी की जल धारण क्षमता को कम कर दिया है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
दिल्ली सरकार ने स्थिति से निपटने के लिए कमर कस ली है। सभी विभागों को हाई अलर्ट पर रखा गया है और एक व्यापक बाढ़ तैयारी योजना को सक्रिय किया गया है। 58 नावों, 675 जीवन रक्षक जैकेटों और 82 मोबाइल पंपों सहित आवश्यक संसाधनों को संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात किया गया है। पुराने रेलवे ब्रिज (लोहा पुल) को भी यातायात के लिए बंद कर दिया गया है।
यह समय है कि हम इस स्थिति को केवल एक प्राकृतिक आपदा के रूप में न देखें, बल्कि यह समझें कि यह हमें अपनी शहरी नियोजन और पर्यावरण प्रबंधन की प्रथाओं पर पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करती है। सामूहिक जागरूकता और सक्रिय भागीदारी से, हम न केवल वर्तमान संकट का सामना कर सकते हैं, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिए भी तैयार हो सकते हैं। यह एक ऐसी घड़ी है जब हमें अपनी सामूहिक चेतना को जागृत कर, एक-दूसरे का सहारा बनकर इस चुनौती का सामना करना है।