पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों में लगातार हो रही भारी वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति और गंभीर हो गई है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने आने वाले दिनों में भी वर्षा जारी रहने की भविष्यवाणी की है, जिससे पहले से ही विकट हालात और बिगड़ सकते हैं। विशेष रूप से जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार जैसे उत्तरी जिलों में बाढ़ का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है, जहाँ कुछ स्थानों पर जल स्तर 11 सेंटीमीटर तक पहुँच गया है। यह स्थिति 2 सितंबर, 2023 से जारी वर्षा के पैटर्न का एक हिस्सा है, जो क्षेत्र की जल निकासी प्रणालियों पर अत्यधिक दबाव डाल रही है।
दक्षिणी जिलों, जिनमें दक्षिण 24 परगना, पुरबा मेदिनीपुर, झाड़ग्राम, पुरुलिया और बांकुरा शामिल हैं, भी भारी वर्षा से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इन क्षेत्रों में भी आगे और बारिश की संभावना जताई गई है, जिससे बाढ़ का खतरा और बढ़ सकता है। बंगाल की खाड़ी में भी मौसम की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है, जहाँ उग्र समुद्र और तेज हवाओं के कारण मछुआरों को अपनी नौकाओं को सुरक्षित किनारे पर रखने की सख्त सलाह दी गई है।
IMD के नवीनतम पूर्वानुमानों के अनुसार, अनुकूल हवा के पैटर्न और बंगाल की खाड़ी से नमी के बड़े पैमाने पर प्रवेश के कारण, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार जिलों में 29 अगस्त से 2 सितंबर, 2025 तक भारी से अत्यंत भारी वर्षा (7 से 20 सेंटीमीटर तक) होने की प्रबल संभावना है। इसके अतिरिक्त, दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और कूचबिहार जिलों में भी 7 से 11 सेंटीमीटर तक भारी वर्षा की उम्मीद है। यह मौसम प्रणाली राज्य के कई निचले इलाकों में बाढ़ की आशंका को और बढ़ाती है।
पश्चिम बंगाल का इतिहास ऐसे जलभराव से भरा रहा है; 1956, 1999 और 2000 जैसे वर्षों में गंभीर बाढ़ देखी गई थी, और राज्य में जुलाई से अक्टूबर के बीच बाढ़ एक वार्षिक घटना बन गई है। मानसून का अनियमित वितरण, जिसमें जून-जुलाई में वर्षा की कमी और अगस्त के अंत से लेकर सितंबर तक अचानक अधिशेष वर्षा शामिल है, ने कृषि क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। किसानों को जहाँ शुरुआत में सूखे का सामना करना पड़ा, वहीं अब अचानक आई बाढ़ से उनकी फसलें नष्ट हो रही हैं।
बंगाल की खाड़ी में बदलते मानसून पैटर्न का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और उत्पादकता पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है, जिससे लाखों लोगों की आजीविका खतरे में पड़ गई है जो मत्स्य पालन पर निर्भर हैं। यह क्षेत्र दुनिया के मत्स्य उत्पादन का लगभग 8% योगदान देता है, और जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र अधिक हिंसक हो गया है। पिछले एक दशक में सुंदरबन डेल्टा क्षेत्र में 165 मछुआरों की जान जा चुकी है, जो इन बदलती और अप्रत्याशित पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति उनकी भेद्यता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
यह स्थिति हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने और आने वाली चुनौतियों के लिए सक्रिय रूप से तैयार रहने की आवश्यकता की याद दिलाती है। यह एक अवसर है कि हम अपनी जल प्रबंधन प्रणालियों को मजबूत करें, जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाएं और पर्यावरण के प्रति अपनी सामूहिक जिम्मेदारी को समझें, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाओं के विनाशकारी प्रभाव को कम किया जाो सके।