राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली इस वर्ष सर्दियों की शुरुआत में गंभीर वायु प्रदूषण की चुनौती का सामना कर रही है। इस स्थिति के मद्देनजर, दिल्ली सरकार ने भीषण शीतकालीन स्मॉग के प्रकोप को नियंत्रित करने के उद्देश्य से मेघ बीजन (क्लाउड सीडिंग) परीक्षणों की शुरुआत की है। यह अभिनव पहल आईआईटी कानपुर के सहयोग से की जा रही है, जो वायु गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
यह महत्वाकांक्षी परियोजना, जिसके तहत कुल पाँच नियोजित संचालन हैं, अक्टूबर 2025 के मध्य में उत्तर और उत्तर-पश्चिम दिल्ली के लक्षित क्षेत्रों पर केंद्रित थी। इस प्रक्रिया में एक विशेष सेसना 206एच विमान का उपयोग किया जा रहा है, जो बादलों में सिल्वर आयोडाइड जैसे एजेंटों का छिड़काव करता है। इस क्रिया का उद्देश्य कृत्रिम वर्षा को प्रेरित करना है, जिससे प्रति उड़ान लगभग 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को लाभ मिल सके। इस वैज्ञानिक हस्तक्षेप को नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) से आवश्यक नियामक स्वीकृति प्राप्त हुई है, जिसके तहत पूरे अभियान के दौरान हवाई यातायात नियंत्रण की मंजूरी और कड़े सुरक्षा मानदंडों का पालन अनिवार्य है।
यह प्रयास तब सामने आया जब दिवाली के बाद शहर में भूरे रंग का घना कोहरा छा गया और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) कई निगरानी स्टेशनों पर 305 के 'बहुत खराब' स्तर पर बना रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो आसमान से बरसने वाली यह वर्षा वायुमंडल में मौजूद हानिकारक कणों को नीचे बिठाकर दृश्यता और समग्र वायु गुणवत्ता में अल्पकालिक सुधार ला सकती है। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने भारत की विशिष्ट मौसमी परिस्थितियों के अनुरूप इस तकनीक को अनुकूलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मत है कि यह तकनीक एक पूर्ण समाधान नहीं है और इसका प्रभाव कुछ दिनों तक ही सीमित रह सकता है, जिसके बाद वायु गुणवत्ता पूर्व स्थिति में लौट सकती है। इसके अतिरिक्त, इस प्रक्रिया की सफलता बादलों में पर्याप्त नमी की उपस्थिति पर निर्भर करती है, जो सर्दियों के दौरान अक्सर दिल्ली में कम होती है। एक प्रारंभिक परीक्षण में, नमी का स्तर आवश्यक 50 प्रतिशत की तुलना में 20 प्रतिशत से भी कम पाया गया था, जिसके कारण वर्षा नहीं हो सकी।
इस पहल के साथ-साथ, सरकार निर्माण पर प्रतिबंध और एंटी-स्मॉग गन जैसे अन्य अल्पकालिक उपायों को भी लागू कर रही है, ताकि जनता को तत्काल राहत मिल सके। इस संपूर्ण प्रयास, जिसकी कुल अनुमानित लागत 3.21 करोड़ रुपये है, दिल्ली के प्रदूषण संकट से निपटने के लिए एक नई वैज्ञानिक दिशा का प्रतीक है, और इसकी सफलता भविष्य में अन्य महानगरों के लिए एक मार्गदर्शक बन सकती है।
