विश्व भर में कृषि क्षेत्र अप्रत्याशित मौसम के पैटर्न से जूझ रहा है, जिससे फसल की पैदावार और गुणवत्ता पर गहरा असर पड़ रहा है। अत्यधिक वर्षा के बाद अचानक तेज गर्मी जैसी चरम मौसमी घटनाएं किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन गई हैं। ये स्थितियां फसलों के विकास चक्र को बाधित करती हैं, जिससे भारी नुकसान होता है।
उदाहरण के लिए, मई 2023 में हरियाणा के नूंह जिले में एक किसान, अरशद खान अली, ने बेमौसम बारिश के कारण अपनी टमाटर की फसल का भारी नुकसान झेला, जिससे उन्हें लाखों का नुकसान हुआ। इसी तरह, असम में 2023 की शुरुआत में 48,000 हेक्टेयर से अधिक की फसल खराब होने की सूचना मिली थी। बढ़ता तापमान और अनियमित वर्षा पैटर्न सीधे तौर पर फसल उत्पादन को प्रभावित कर रहे हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से गेहूं का उत्पादन 17% तक कम हो सकता है, और धान का उत्पादन भी 0.75 टन प्रति हेक्टेयर कम हो सकता है। सदी के अंत तक गेहूं की उत्पादकता में 2050 तक 19.3% और 2080 तक 40% की गिरावट का अनुमान है, जबकि बारिश पर निर्भर चावल की खेती में भी इसी अवधि में 20% से 47% तक की कमी आ सकती है।
भारतीय कृषि, जो काफी हद तक मानसून पर निर्भर है, इन बदलावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है। मौसम में ये अप्रत्याशित बदलाव न केवल किसानों की आय को प्रभावित करते हैं, बल्कि उपभोक्ताओं के लिए खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि का कारण भी बनते हैं। उत्पादन में कमी के कारण बाजार में आपूर्ति घट जाती है, जिससे लागत बढ़ जाती है और उपभोक्ता खर्च करने में अधिक सतर्क हो जाते हैं। यह स्थिति कृषि समुदायों पर भारी दबाव डालती है, क्योंकि उन्हें उत्पादन लागत में वृद्धि और उपज में कमी दोनों का सामना करना पड़ता है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए, जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाना महत्वपूर्ण है। इसमें सूखा-सहिष्णु और उच्च तापमान प्रतिरोधी किस्मों का विकास, जल प्रबंधन तकनीकों में सुधार, और फसल विविधीकरण शामिल है। भारत सरकार भी किसानों को सहायता प्रदान करने के लिए विभिन्न योजनाएं चला रही है, जैसे कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, जो प्रतिकूल मौसम की स्थिति में फसलों को हुए नुकसान के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, किसानों को नवीनतम कृषि तकनीकों और मौसम की जानकारी से अवगत कराना भी आवश्यक है ताकि वे बदलते मौसम के अनुरूप अपनी रणनीतियों को समायोजित कर सकें।
दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा और कृषि क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, इन अप्रत्याशित मौसमी घटनाओं के प्रभावों को कम करने के लिए निरंतर नवाचार और अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता है। किसानों को नई तकनीकों और सरकारी योजनाओं के बारे में शिक्षित और सशक्त बनाना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।