वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने एक अभूतपूर्व खोज की है: बर्फ़ के मुड़ने या विकृत होने पर बिजली पैदा कर सकती है। यह घटना, जिसे फ्लेक्सोइलेक्ट्रिसिटी (flexoelectricity) कहा जाता है, ठंडे वातावरण में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और ऊर्जा संचयन प्रणालियों के विकास के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोलती है। यह शोध प्रतिष्ठित जर्नल नेचर फिजिक्स में प्रकाशित हुआ था। इस अध्ययन का नेतृत्व बार्सिलोना में कैटेलन इंस्टीट्यूट ऑफ नैनोटेक्नोलॉजी एंड नैनोमटेरियल्स (ICN2) के वैज्ञानिकों ने चीन के शियान जियाओतोंग विश्वविद्यालय और संयुक्त राज्य अमेरिका के स्टोनी ब्रुक विश्वविद्यालय के साथ मिलकर किया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि शुद्ध बर्फ़ विकृत होने पर एक विद्युत आवेश उत्पन्न करती है, लेकिन यह स्तर काफी कम होता है और व्यावहारिक तकनीकी अनुप्रयोगों के लिए अपर्याप्त है। हालांकि, जब इसमें 25% की सांद्रता में सामान्य नमक मिलाया गया, तो बर्फ़ में फ्लेक्सोइलेक्ट्रिक गुणांक (flexoelectric coefficient) शुद्ध बर्फ़ की तुलना में हज़ार गुना अधिक पाया गया। यह इसे वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक्स में उपयोग की जाने वाली अन्य सामग्रियों के बराबर लाता है। यह खोज ग्लेशियरों जैसी बर्फीली वातावरण में कम लागत वाले सेंसर और ऊर्जा संचयन उपकरणों के विकास के लिए उपयोगी हो सकती है।
इस घटना का उपयोग ध्रुवीय क्षेत्रों जैसे अत्यधिक ठंडे वातावरण में कम लागत वाले सेंसर और ऊर्जा संचयन उपकरणों के विकास के लिए किया जा सकता है। यह खोज ग्लेशियरों जैसी बर्फीली वातावरण में प्राकृतिक प्रक्रियाओं की समझ को बढ़ाने का भी सुझाव देती है। इसके अलावा, यह सौर मंडल के बर्फीले चंद्रमाओं, जैसे यूरोपा और एन्सेलेडस पर विद्युत गतिविधि की उपस्थिति को समझने में भी सहायक हो सकती है। यह वैज्ञानिक प्रगति न केवल तकनीकी निहितार्थों के साथ आती है, बल्कि प्राकृतिक घटनाओं की बेहतर समझ और स्वच्छ व टिकाऊ प्रौद्योगिकियों के निर्माण में भी योगदान दे सकती है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि बर्फ़ में फ्लेक्सोइलेक्ट्रिक प्रभाव टाइटेनियम डाइऑक्साइड और स्ट्रोंटियम टाइटेनेट जैसी सामग्रियों के बराबर है, जिनका उपयोग कैपेसिटर और सेंसर में किया जाता है। इससे बर्फ़ का उपयोग स्वयं कम लागत वाले, अस्थायी इलेक्ट्रॉनिक्स के एक सक्रिय घटक के रूप में किया जा सकता है जो आर्कटिक या उच्च-ऊंचाई वाले वातावरण में कार्य करते हैं। यह खोज भविष्य के इंजीनियरिंग नवाचारों को भी प्रेरित कर सकती है, जिससे ध्रुवीय ग्लेशियरों में सेंसर या जमे हुए उपग्रहों पर ऊर्जा-संचयन सतहें जैसी संभावनाएं साकार हो सकती हैं।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि बर्फ़, जिसे हम अक्सर एक निष्क्रिय पदार्थ मानते हैं, वास्तव में यांत्रिक तनाव के प्रति प्रतिक्रिया कर सकती है और एक विद्युत चिंगारी उत्पन्न कर सकती है। यह खोज प्राकृतिक घटनाओं की हमारी समझ को गहरा करती है और ऊर्जा उत्पादन के नए रास्ते खोलती है। शोध में यह भी पाया गया कि -113°C से नीचे के तापमान पर, बर्फ़ की सतह पर एक पतली परत फेरोइलेक्ट्रिक (ferroelectric) व्यवहार प्रदर्शित करती है, जिसका अर्थ है कि यह एक प्राकृतिक विद्युत ध्रुवीकरण विकसित कर सकती है जिसे बाहरी विद्युत क्षेत्र द्वारा उलटा किया जा सकता है।