नेपोलियन के 1812 के रूसी अभियान के पतन का रहस्य: डीएनए विश्लेषण से नए रोगजनकों की पहचान
द्वारा संपादित: Tetiana Martynovska 17
इतिहास के पन्नों में दर्ज 1812 के रूसी अभियान की विफलता, जिसे नेपोलियन बोनापार्ट के लिए एक विनाशकारी मोड़ माना जाता है, अब वैज्ञानिक जांच के माध्यम से एक नई गहराई ले रही है। हाल ही में किए गए डीएनए विश्लेषण ने उस भयावह पतन में योगदान देने वाले कई रोगाणुओं के ठोस प्रमाण प्रस्तुत किए हैं, जो केवल पहले अनुमानित टाइफस तक सीमित नहीं थे। यह शोध सामूहिक नियति को आकार देने वाले अदृश्य कारकों पर प्रकाश डालता है जो अतीत की बड़ी घटनाओं के पीछे काम करते हैं।
यह अध्ययन इंस्टीट्यूट पाश्चर के निकोलस रास्कोवन के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना के अवशेषों पर केंद्रित था। शोधकर्ताओं ने लिथुआनिया के विल्नियस में एक सामूहिक कब्र से निकाले गए 13 सैनिकों के दांतों से डीएनए का विश्लेषण किया। यह स्थल फ्रांसीसी सेना के रूस से वापसी के मार्ग पर स्थित था, जहाँ भीषण ठंड, भुखमरी और निरंतर सैन्य दबाव के बीच बीमारी ने लाखों लोगों को लील लिया था। यह अभियान, जिसे रूस में '1812 का देशभक्तिपूर्ण युद्ध' भी कहा जाता है, नेपोलियन की महत्वाकांक्षाओं के लिए एक आईना बना।
इस आनुवंशिक जांच में दो ऐसे जीवाणुओं के निशान मिले जो पहले अनजाने थे: *साल्मोनेला एंटेरिका* (Salmonella enterica), जो पैराटाइफाइड बुखार के लिए जिम्मेदार है, और *बोरेलिया रिकरेंटिस* (Borrelia recurrentis), जिससे रिलैप्सिंग फीवर होता है। पैराटाइफाइड बुखार तेज बुखार, थकान और पाचन संबंधी समस्याओं का कारण बनता है, जबकि रिलैप्सिंग फीवर, जो अक्सर जूँ (lice) द्वारा फैलता है, बुखार के दौरों और ठंड लगने की विशेषता रखता है। इन दोनों बीमारियों के एक साथ होने से सैनिकों की पहले से ही नाजुक स्थिति और बिगड़ गई होगी। दिलचस्प बात यह है कि इस विश्लेषण में टाइफस के लिए जिम्मेदार *रिकेत्सीया प्रोवाज़ेकी* (Rickettsia prowazekii) का कोई प्रमाण नहीं मिला, जबकि ऐतिहासिक विवरणों में टाइफस का उल्लेख प्रमुखता से किया गया था।
यह शोध 24 अक्टूबर, 2025 को प्रतिष्ठित पत्रिका *करंट बायोलॉजी* में प्रकाशित हुआ। यह अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे प्राचीन डीएनए तकनीकें सूक्ष्मजीवों के इतिहास को फिर से लिख सकती हैं जो राष्ट्रों के भाग्य को आकार देते हैं। यह भी ज्ञात है कि इस अभियान में फ्रांसीसी सेना को कुल 500,000 हताहतों का सामना करना पड़ा, जिनमें से 300,000 मारे गए, और इन नुकसानों का एक बड़ा हिस्सा बीमारी या मौसम के कारण हुआ था। यह घटना याद दिलाती है कि बाहरी परिस्थितियाँ आंतरिक अवस्थाओं का प्रकटीकरण होती हैं; जब व्यवस्था आंतरिक रूप से चरमरा जाती है, तो बाहरी चुनौतियाँ उसे ढहाने का कार्य करती हैं।
स्रोतों
News Flash
Ars Technica
Chemical & Engineering News
The Washington Post
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