दक्षिण-पूर्व एशिया में सुपारी चबाने की प्रथा हजारों वर्षों से चली आ रही है। हाल के शोधों से पता चला है कि कांस्य युग के दौरान लगभग 4,000 वर्ष पहले थाईलैंड के नोंग रत्चावत स्थल पर पाए गए मानव कंकालों में दंत पट्टिका (टार्टर) में सुपारी के रासायनिक अवशेष मिले हैं। यह खोज इस क्षेत्र में सुपारी चबाने की प्रथा की प्राचीनता को दर्शाती है।
इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने दंत पट्टिका के भीतर सुपारी से संबंधित रासायनिक यौगिकों की पहचान की, जो नियमित सुपारी चबाने के प्रमाण प्रदान करते हैं। यह विधि प्राचीन काल में पौधों के उपयोग के बारे में अधिक सटीक जानकारी प्राप्त करने में सहायक है, विशेषकर जब पारंपरिक पुरातात्विक साक्ष्य अनुपस्थित हों।
सुपारी चबाने की प्रथा दक्षिण-पूर्व एशिया में सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। हालांकि, इसके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव भी हैं, जैसे मौखिक कैंसर और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं। इसलिए, इस प्रथा के ऐतिहासिक महत्व को समझते हुए, इसके स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।
यह शोध प्राचीन काल में सुपारी चबाने की प्रथा की गहरी समझ प्रदान करता है और भविष्य में इस विषय पर और अधिक अध्ययन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।