जीवाश्म वैज्ञानिकों ने जर्मनी के बावरिया क्षेत्र में स्थित मिस्टेलगौ मिट्टी के गड्ढे से ईथीओसॉरस की एक नई प्रजाति, यूरिनोसोरस मिस्टेलगौएन्सिस (Eurhinosaurus mistelgauensis) की पहचान की है। यह खोज, जो सितंबर 2025 में जर्नल फॉसिल रिकॉर्ड में प्रकाशित हुई है, जुरैसिक काल के समुद्री सरीसृपों के एक दुर्लभ समूह के बारे में हमारी समझ को बढ़ाती है। इस नई प्रजाति के जीवाश्मों में दो लगभग पूर्ण कंकाल और एक आंशिक थूथन शामिल हैं, जो त्रि-आयामी रूप में संरक्षित हैं। ये नमूने यूरिनोसोरस वंश के सबसे हालिया ज्ञात उदाहरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे इसके अस्तित्व का समय जुरैसिक काल में और पीछे चला जाता है।
यह खोज मिस्टेलगौ के जीवाश्म स्थल के वैश्विक महत्व को रेखांकित करती है, जो 1998 से महत्वपूर्ण जीवाश्म खोजों का स्रोत रहा है। उरवेल्ट-म्यूजियम ओबरफ्रेंकेन (Urwelt-Museum Oberfranken) ने इन जीवाश्मों के उत्खनन और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो प्राचीन समुद्री जीवन के अध्ययन के लिए इस स्थल के मूल्य को दर्शाता है। यूरिनोसोरस मिस्टेलगौएन्सिस का नामकरण मिस्टेलगौ क्षेत्र के वैज्ञानिक महत्व को उजागर करता है।
यह प्रजाति अपने लंबे थूथन और आधुनिक स्वोर्डफ़िश के समान एक विशिष्ट ओवरबाइट (ऊपरी जबड़े का नीचे वाले से आगे होना) के लिए जानी जाती है। इसके अलावा, इस नई प्रजाति में पहले ज्ञात प्रजातियों की तुलना में विशेष रूप से मजबूत पसलियां और खोपड़ी व गर्दन को जोड़ने वाले जोड़ में अनूठी विशेषताएं पाई गई हैं। ये अंतर इसे अन्य यूरिनोसोरस प्रजातियों से अलग करते हैं।
यह खोज जुरैसिक समुद्री जीवों और उनके विकास के अध्ययन में मूल्यवान डेटा जोड़ती है। मिस्टेलगौ के जीवाश्मों पर आगे के अध्ययन जारी हैं, जिनमें कंकालों में पाई गई चोटों का विश्लेषण शामिल है, जो इन प्राचीन समुद्री सरीसृपों की पारिस्थितिकी और जीवन इतिहास पर प्रकाश डाल सकते हैं। यह खोज हमें उस समय के बारे में दुर्लभ अंतर्दृष्टि प्रदान करती है जो अन्यथा विश्व स्तर पर बहुत कम प्रलेखित है। यह जीवाश्मों के संरक्षण के महत्व और हमारे ग्रह के अतीत को समझने में उनके योगदान का एक प्रमाण है।