अंटार्कटिका के बर्फीले विस्तार से उभरती एक पिरामिड जैसी संरचना की छवि ने हाल ही में डिजिटल मंचों पर काफी हलचल मचाई है, जिससे इसकी उत्पत्ति को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। हालाँकि, वैज्ञानिक जांच ने इस धारणा को स्पष्ट कर दिया है कि यह संरचना वास्तव में प्रकृति की ही एक रचना है, जो लाखों वर्षों के भूवैज्ञानिक परिवर्तनों का परिणाम है। यह विशिष्ट भूवैज्ञानिक आकृति अंटार्कटिका की सबसे ऊँची चोटी, माउंट विंसन मैसिफ के पास, एलस्वर्थ पर्वत श्रृंखला के क्षेत्र में स्थित है।
वर्ष 2016 के आसपास उपग्रह चित्रों के माध्यम से इसके सममितीय पिरामिड जैसे स्वरूप के सामने आने के बाद अटकलें शुरू हुईं, जिसने कुछ सिद्धांतकारों को प्राचीन सभ्यताओं या अलौकिक हस्तक्षेप के अस्तित्व का सुझाव देने के लिए प्रेरित किया। भूविज्ञान के विशेषज्ञ इस 'पिरामिड' को प्राकृतिक क्षरण प्रक्रियाओं का परिणाम बताते हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों में सामान्य क्षरण की प्रक्रिया, विशेष रूप से 'फ्रीज-थॉ' (जमाव-पिघलाव) क्षरण, ने लाखों वर्षों में चट्टान को तराशा है, जिससे यह पिरामिड जैसी ज्यामिति बनी है। यह प्रक्रिया तब होती है जब दिन के दौरान पानी चट्टान की दरारों में रिसता है, रात में जम जाता है, और फैलता है, जिससे धीरे-धीरे चट्टान के टुकड़े टूटकर पहाड़ को उसका विशिष्ट आकार देते हैं।
इस प्राकृतिक व्याख्या को दुनिया भर में पाए जाने वाले समान संरचनाओं से बल मिलता है, जैसे कि आल्प्स में प्रसिद्ध मैटरहॉर्न। इन उभरी हुई चोटियों को भूवैज्ञानिक शब्दावली में 'नूनाटाक' (Nunatak) कहा जाता है। नूनाटाक वे चट्टानी शिखर होते हैं जो ग्लेशियरों या बर्फ की चादरों के ऊपर से बाहर निकले रहते हैं, और ये क्षरण तथा अन्य भूवैज्ञानिक शक्तियों द्वारा आकार लेते हैं। नूनाटाक, जिसका अर्थ 'अकेला शिखर' है, उन पर्वतीय चोटियों को कहते हैं जो आसपास की जमी हुई बर्फ या ग्लेशियरों से ऊपर उठकर द्वीपों के समान दिखाई देती हैं। ये संरचनाएँ न केवल अंटार्कटिका में, बल्कि ग्रीनलैंड और हिमालय जैसे अन्य अत्यधिक हिमीकृत क्षेत्रों में भी बहुतायत में पाई जाती हैं।
भूवैज्ञानिकों का कहना है कि एलस्वर्थ पर्वत श्रृंखला, जो 400 किलोमीटर से अधिक लंबी है, में बर्फ के ऊपर चट्टानी चोटियों का उभरना असामान्य नहीं है। विशेषज्ञ डॉ. मिच डार्सी के अनुसार, इसका पिरामिड जैसा दिखना मात्र एक संयोग है, और परिभाषा के अनुसार यह एक नूनाटाक है। संक्षेप में, जिसे अंटार्कटिका का 'पिरामिड' माना जा रहा है, वह वास्तव में एक प्राकृतिक भूवैज्ञानिक विशेषता है, जिसे लाखों वर्षों की क्षरणकारी शक्तियों ने ढाला है। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि प्रकृति के पास ऐसे आश्चर्यजनक और सममितीय स्वरूपों को रचने की अद्भुत क्षमता है, जो सतह के नीचे छिपी गहरी प्रक्रियाओं को दर्शाते हैं।