वर्ष 1959 में अंटार्कटिका में एक हिम दरार में गिरने से जान गंवाने वाले ब्रिटिश मौसम विज्ञानी डेनिस "टिंक" बेल के अवशेष जनवरी 2025 में पिघलती बर्फ के कारण मिले हैं। 25 वर्षीय बेल की मृत्यु किंग जॉर्ज द्वीप पर एक अभियान के दौरान हिम दरार में गिरने से हुई थी। उनके सहयोगियों ने बचाव का प्रयास किया था, लेकिन एक रस्सी टूट गई, जिससे वे दूसरी बार गिर गए और उनकी मृत्यु हो गई। बेल 1958 में ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण (BAS) के पूर्ववर्ती संगठन में शामिल हुए थे। हेनरीक आर्कटोव्स्की स्टेशन पर मौजूद पोलिश शोधकर्ताओं ने उस क्षेत्र में उनके अवशेष और व्यक्तिगत वस्तुएं पाईं जहां उनकी मृत्यु हुई थी। डीएनए परीक्षण से पहचान की पुष्टि हुई, जिससे 66 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद उनके परिवार को शांति मिली।
बीएएस की निदेशक जेन फ्रांसिस ने चरम परिस्थितियों में बेल के अग्रणी काम पर प्रकाश डाला और कहा कि इस खोज ने एक लंबे समय से चले आ रहे रहस्य को सुलझा दिया है। किंग जॉर्ज द्वीप पर बेल पॉइंट का नाम उनके सम्मान में रखा गया है। बेल की मृत्यु 26 जुलाई 1959 को हुई थी, जब वे एक हिम दरार में गिर गए थे। उनके साथी, सर्वेक्षक जेफ स्टोक्स, ने बेल को बचाने के लिए एक रस्सी नीचे भेजी थी। बेल ने रस्सी को अपनी बेल्ट से बांध लिया था, लेकिन जब स्टोक्स उन्हें ऊपर खींच रहे थे, तो रस्सी टूट गई और बेल फिर से दरार में गिर गए। इस बार, स्टोक्स की पुकार का कोई जवाब नहीं आया। यह घटना ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण के इतिहास का हिस्सा है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ऑपरेशन टैबरिन से उत्पन्न हुआ था। बीएएस आज भी अंटार्कटिका में वैज्ञानिक अनुसंधान और अन्वेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हेनरीक आर्कटोव्स्की स्टेशन, जहां बेल के अवशेष पाए गए, 1977 में स्थापित किया गया था और यह पोलिश अंटार्कटिक कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह स्टेशन किंग जॉर्ज द्वीप पर स्थित है और विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों में संलग्न है, जिसमें समुद्री जीव विज्ञान, भूविज्ञान और जलवायु विज्ञान शामिल हैं। पिघलती बर्फ के कारण बेल के अवशेषों का मिलना जलवायु परिवर्तन के व्यापक प्रभावों को भी रेखांकित करता है। अंटार्कटिका में ग्लेशियरों का पिघलना समुद्र के स्तर में वृद्धि का कारण बन सकता है, जिसका वैश्विक तटीय समुदायों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। बेल की कहानी अंटार्कटिक अन्वेषण के शुरुआती दिनों की कठिनाइयों और खतरों की याद दिलाती है, साथ ही यह भी दर्शाती है कि कैसे वैज्ञानिक प्रगति और दृढ़ता समय के साथ खोए हुए रहस्यों को उजागर कर सकती है।