वैज्ञानिकों ने पिछले दो दशकों से अंटार्कटिक के जल में एक रहस्यमयी चमक का अवलोकन किया है, जिसे अब सूक्ष्म डायटम और कोकोलिथोफोरस से उत्पन्न होने वाला पाया गया है। उपग्रहों द्वारा ली गई इन चमकीले क्षेत्रों की छवियों ने इस पहेली को सुलझाने में मदद की है, जो पहले उत्तरी क्षेत्रों में 'ग्रेट कैल्साइट बेल्ट' से जुड़ी हुई थीं। यह चमक, जो अंतरिक्ष से भी दिखाई देती है, महासागरों के उन हिस्सों को उजागर करती है जहां जीवन प्रचुर मात्रा में है।
इस रहस्य को उजागर करने के लिए, स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी द्वारा संचालित अनुसंधान पोत आर/वी रोजर रेवेल (R/V Roger Revelle) ने 60वें समानांतर दक्षिण की ओर एक महत्वपूर्ण यात्रा की। यह जहाज उन्नत उपकरणों से सुसज्जित है और इसने पानी के रंग, परावर्तनशीलता और जैविक समुदायों का गहन अध्ययन किया। शोध से पुष्टि हुई कि छोटे डायटम, जो सिलिका से बनी कांच जैसी खोल से ढके होते हैं, इस चमक का एक प्रमुख कारण हैं। ये खोल प्रकाश को इस तरह से परावर्तित करते हैं कि वे उपग्रहों द्वारा पता लगाए जा सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि कोकोलिथोफोरस, जो कैल्शियम कार्बोनेट के चमकदार खोल वाले सूक्ष्म जीव हैं, इन ठंडे दक्षिणी जल में भी जीवित रह सकते हैं। यह खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि ये जीव, जिन्हें पहले केवल उत्तरी, गर्म क्षेत्रों में पनपते माना जाता था, अब पोषक चक्रों में 'बीज आबादी' के रूप में कार्य कर सकते हैं। कोकोलिथोफोरस, अपने कैल्शियम कार्बोनेट के खोल के माध्यम से, कार्बन को समुद्र की गहराइयों में ले जाने में भी भूमिका निभाते हैं, जिससे वे महासागरों के कार्बन चक्र का एक अभिन्न अंग बन जाते हैं।
अंटार्कटिक क्षेत्र पृथ्वी के कार्बन चक्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो एक विशाल कार्बन भंडार के रूप में कार्य करता है। डायटम और कोकोलिथोफोरस जैसे सूक्ष्म जीव, प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। जब ये जीव मर जाते हैं, तो उनके खोल और अवशेष समुद्र तल में डूब जाते हैं, जिससे कार्बन लंबे समय तक संग्रहीत हो जाता है। यह प्रक्रिया, जिसे जैविक कार्बन पंप कहा जाता है, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में सहायक है।
हालांकि, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव इन सूक्ष्म जीवों के संतुलन को बिगाड़ रहे हैं। अध्ययनों से पता चला है कि डायटम की आबादी में कमी आ रही है, जबकि छोटे और कम पौष्टिक फाइटोप्लांकटन प्रजातियां बढ़ रही हैं। डायटम कार्बन को अवशोषित करने में अधिक प्रभावी होते हैं, क्योंकि उनकी सिलिका की खोल कार्बन को फंसा लेती है और जब वे डूबते हैं तो कार्बन को अपने साथ ले जाते हैं। उनकी कमी से महासागरों की कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता कमजोर हो सकती है, जिसका वैश्विक जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। महासागर अम्लीकरण और जल स्तरीकरण जैसे कारक भी इन सूक्ष्म जीवों के विकास को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र में और बदलाव आ सकते हैं।
उपग्रहों द्वारा ली गई महासागर के रंग की छवियां, जैसे कि नासा के ओशन कलर कार्यक्रम द्वारा प्रदान की गई, इन विशाल, अदृश्य प्रक्रियाओं को समझने के लिए अमूल्य उपकरण हैं। इन सूक्ष्म जीवों के जीवन चक्र और उनके पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति प्रतिक्रिया को समझना, भविष्य में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अनुमान लगाने और उनसे निपटने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हमें याद दिलाता है कि कैसे सबसे छोटे जीव भी हमारे ग्रह के स्वास्थ्य और स्थिरता में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं, और कैसे प्रकृति की अपनी व्यवस्थाएं हमें संतुलन और अनुकूलन के महत्वपूर्ण सबक सिखाती हैं।