20 अगस्त 2025, बुधवार को एशियाई शेयर बाजारों में गिरावट देखी गई, जो वॉल स्ट्रीट पर आई मंदी के अनुरूप थी। निवेशकों की प्रतिक्रिया मुख्य रूप से जापान के निराशाजनक निर्यात आंकड़ों और चीन की आर्थिक दिशा को लेकर बढ़ती चिंताओं पर केंद्रित थी।
जापान के लिए जुलाई 2025 के निर्यात के आंकड़े चिंताजनक थे, जिसमें पिछले चार वर्षों में सबसे तेज गिरावट दर्ज की गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, निर्यात में साल-दर-साल 2.6% की कमी आई, जो विश्लेषकों की 2.1% की गिरावट की उम्मीद से अधिक थी। यह लगातार तीसरा महीना था जब निर्यात में गिरावट देखी गई। इस गिरावट का एक प्रमुख कारण संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स जैसे क्षेत्रों पर लगाए गए बढ़े हुए टैरिफ थे, जहां निर्यात में क्रमशः 28.4% और 17.4% की भारी गिरावट आई। इसके परिणामस्वरूप, जापान का व्यापार संतुलन जुलाई में 117.5 बिलियन येन के घाटे में चला गया, जो 196.2 बिलियन येन के अधिशेष की उम्मीद के विपरीत था।
इस आर्थिक परिदृश्य को अमेरिका-चीन व्यापार तनाव ने और अधिक जटिल बना दिया। अप्रैल 2025 में घोषित नए टैरिफ ने कई देशों को प्रभावित किया था, जिससे वैश्विक व्यापारिक माहौल में अनिश्चितता बनी हुई थी। यह व्यापक आर्थिक अनिश्चितता एशियाई एक्सचेंजों पर व्यापक बिकवाली का एक महत्वपूर्ण कारक बनी रही।
इस बीच, चीन के केंद्रीय बैंक, पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (पीबीओसी) ने अपनी प्रमुख ऋण दरों को लगातार तीसरे महीने अपरिवर्तित रखा। एक साल की ऋण प्राइम रेट (एलपीआर) 3.0% पर और पांच साल से अधिक की एलपीआर 3.5% पर स्थिर रही। यह निर्णय ऐसे समय में आया जब चीन की अर्थव्यवस्था में गति धीमी होने के संकेत मिल रहे थे; जुलाई में औद्योगिक उत्पादन आठ महीनों में सबसे धीमी गति से बढ़ा और खुदरा बिक्री में दिसंबर 2024 के बाद सबसे कमजोर वृद्धि देखी गई। विश्लेषकों का मानना है कि चीन की अर्थव्यवस्था की नाजुक स्थिति को देखते हुए, केंद्रीय बैंक संभवतः दूसरी छमाही में केवल मामूली दर में कटौती की उम्मीद कर रहा है।
इन व्यापक आर्थिक कारकों के प्रभाव से एशियाई बाजारों में गिरावट आई। जापान का निक्केई 225 0.93% गिर गया, जबकि टोपिंक्स 0.31% नीचे था। दक्षिण कोरिया का कोस्पी 1.52% फिसल गया, और ऑस्ट्रेलिया का एस एंड पी/ए एस एक्स 200 0.24% की गिरावट के साथ खुला। हांगकांग का हैंग सेंग फ्यूचर्स भी कमजोर शुरुआत का संकेत दे रहा था। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जापानी निर्यातकों को अमेरिकी टैरिफ के कारण अपनी लागत अंततः अमेरिकी उपभोक्ताओं पर डालनी पड़ सकती है, जिससे आने वाले महीनों में बिक्री और प्रभावित हो सकती है। यह स्थिति वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और व्यापार संबंधों के पुनर्संरचना की आवश्यकता को रेखांकित करती है, जहां कंपनियां अनिश्चितता के इस दौर में अपनी रणनीतियों को अनुकूलित करने के लिए प्रेरित हो रही हैं।