8 सितंबर, 2025 को फ्रांस की नेशनल असेंबली में प्रधानमंत्री फ़्रांस्वा बायरो की सरकार के खिलाफ विश्वास मत का प्रस्ताव पारित हो गया, जिसके परिणामस्वरूप बायरो को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस घटना ने फ्रांस की राजनीतिक स्थिरता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है और राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। बायरो, जिन्हें 13 दिसंबर, 2024 को नियुक्त किया गया था, ने अपने नौ महीने के कार्यकाल में €44 बिलियन की घाटा-कटौती योजना को लागू करने का प्रयास किया। इस योजना में सार्वजनिक अवकाशों को समाप्त करना और पेंशनभोगियों पर कर लगाना जैसे कड़े उपाय शामिल थे।
इन उपायों का उद्देश्य फ्रांस के बढ़ते राष्ट्रीय ऋण को कम करना था, जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 114% तक पहुँच गया था, और यूरोपीय संघ की 3% राजकोषीय घाटे की सीमा को पूरा करना था। हालांकि, इन उपायों का व्यापक विरोध हुआ। नेशनल रैली, सोशलिस्ट पार्टी, ग्रीन्स और ला फ्रांस इंसौमिस जैसे प्रमुख विपक्षी दलों ने स्पष्ट कर दिया था कि वे सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करेंगे। इस व्यापक विरोध के कारण ही सरकार को बहुमत नहीं मिल सका और बायरो को इस्तीफा देना पड़ा।
यह फ्रांस के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि यह पिछले एक साल में दूसरी बार है जब किसी सरकार को विश्वास मत में हार का सामना करना पड़ा है। बायरो से पहले, मिशेल बार्नियर भी इसी तरह के कारणों से पद से हटा दिए गए थे। वित्त मंत्री एरिक लोम्बार्ड ने संकेत दिया है कि घाटा-कटौती योजना का दायरा कम किया जा सकता है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि नई सरकार को वामपंथी दलों के साथ बातचीत करनी पड़ सकती है, जिससे वित्तीय समेकन के प्रयासों में कमी आ सकती है।
इस राजनीतिक उथल-पुथल के बीच, राष्ट्रपति मैक्रों अब नए प्रधानमंत्री की नियुक्ति की प्रक्रिया में हैं। यह स्थिति फ्रांस के भविष्य की वित्तीय नीतियों को अनिश्चितता के बादल में धकेल रही है। यह घटनाक्रम फ्रांस में राजनीतिक अस्थिरता के बढ़ते दौर को दर्शाता है, जहाँ राष्ट्रपति मैक्रों को लगातार संसदीय समर्थन जुटाने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। देश की आर्थिक स्थिति और आगामी बजट को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।