काठमांडू: नेपाल में अभूतपूर्व युवा-आंदोलनों ने देश को हिलाकर रख दिया है, जिसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। यह उथल-पुथल 4 सितंबर, 2025 को सरकार द्वारा 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद शुरू हुई, जिसे 9 सितंबर को हटा लिया गया। इस प्रतिबंध को असंतोष को दबाने के एक प्रयास के रूप में देखा गया, जिससे देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए।
इन विरोध प्रदर्शनों में, जिन्हें "जेन जेड" आंदोलन के रूप में जाना जाता है, युवा पीढ़ी ने भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानता और राजनीतिक विशेषाधिकारों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। काठमांडू, बिरगंज, भैरहवा, बुटवल, पोखरा, इटहरी और दमक जैसे शहरों में कर्फ्यू लगाया गया, क्योंकि प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़पें हुईं। इन झड़पों में कम से कम 19 लोगों की मौत हुई और सैकड़ों घायल हुए। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी भवनों पर हमला किया और आगजनी की, जिसमें संघीय संसद भवन भी शामिल था।
इस संकट के बीच, काठमांडू के मेयर, बलेंद्र शाह, एक युवा नेता के रूप में उभरे हैं, जिन्होंने विरोध प्रदर्शनों का समर्थन किया और सरकार से जवाबदेही की मांग की। शाह, जो पहले एक रैपर और इंजीनियर थे, ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी मुखर स्थिति के लिए युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल की है।
यह घटना नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और आर्थिक असमानता के गहरे मुद्दों को उजागर करती है। 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार, नेपाल में 12.6% युवा बेरोजगार हैं, जिसमें 15-24 आयु वर्ग के लिए बेरोजगारी दर 22.7% है। लगभग 20.3% आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है। ये सामाजिक-आर्थिक कारक युवाओं के बीच असंतोष को बढ़ाते हैं, जिससे वे राजनीतिक परिवर्तन के लिए प्रेरित होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, जिसमें भारत और मानवाधिकार संगठन शामिल हैं, ने शांति और संवाद का आह्वान किया है, साथ ही सुरक्षा बलों द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग की जांच की मांग की है। यह घटना दर्शाती है कि कैसे युवा पीढ़ी डिजिटल युग में राजनीतिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, और कैसे सोशल मीडिया जैसे मंच सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों के लिए शक्तिशाली उपकरण बन सकते हैं।