मुंबई की आप्रवासी महिलाओं के जीवन पर आधारित अपनी पहली फीचर फिल्म "सॉन्ग्स ऑफ फॉरगॉटन ट्रीज" के लिए भारतीय फिल्मकार अनुपर्णा रॉय ने 82वें वेनिस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में इतिहास रच दिया है। उन्होंने ओरिजोंटी प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार जीता है, जो किसी भारतीय फिल्मकार के लिए इस प्रतिष्ठित खंड में पहली बार है। यह उपलब्धि न केवल रॉय के लिए बल्कि भारतीय सिनेमा के लिए भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
यह फिल्म 1 सितंबर, 2025 को प्रदर्शित हुई थी और यह मुंबई में रहने वाली दो आप्रवासी महिलाओं के जीवन, उनके शहरी संघर्षों और व्यक्तिगत यात्राओं को गहराई से दर्शाती है। फिल्म को अनुराग कश्यप ने प्रस्तुत किया है और इसका निर्माण बिभंशु राय, रोमिल मोदी और रंजन सिंह ने किया है। रॉय ने यह पुरस्कार दुनिया भर की महिलाओं को समर्पित किया है, विशेष रूप से उन लोगों को जिन्हें खामोश या कमतर आंका गया है।
अनुपर्णा रॉय की यह जीत उनके संघर्ष और दृढ़ संकल्प का प्रमाण है। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के एक छोटे से गांव नारायणपुर से आने वाली रॉय ने कॉर्पोरेट जगत की एक स्थिर नौकरी छोड़कर मुंबई में अपने फिल्म निर्माण के सपने को पूरा करने का फैसला किया था। उनके माता-पिता, ब्रह्मानंद और मनीषा रॉय, शुरू में उनकी पसंद को लेकर चिंतित थे, लेकिन उनकी बेटी की सफलता ने उन्हें दुनिया का सबसे गौरवान्वित माता-पिता बना दिया है। रॉय ने अपनी शिक्षा कुल्टी कॉलेज से पूरी की और बाद में दिल्ली से मास कम्युनिकेशन में मास्टर डिग्री हासिल की। फिल्म निर्माण में आने से पहले, उन्होंने दिल्ली और मुंबई में आईटी क्षेत्र में काम किया था।
"सॉन्ग्स ऑफ फॉरगॉटन ट्रीज" को सेल्युलाइड ड्रीम्स द्वारा विश्व स्तर पर बेचा गया है। फिल्म की कहानी दो महिलाओं, थूया (नाज़ शेख) द्वारा निभाई गई एक महत्वाकांक्षी अभिनेत्री और श्वेता (सुमी बघेल) द्वारा निभाई गई एक कॉर्पोरेट पेशेवर के बीच पनपते रिश्ते को दर्शाती है। यह फिल्म शहरी जीवन, अकेलेपन, संघर्ष और मौन प्रतिरोध के विषयों को छूती है। रॉय ने अपने एक बयान में कहा कि यह फिल्म उनके बचपन की यादों और महिलाओं के जीवन के अवलोकन से प्रेरित है।
इस जीत के साथ, अनुपर्णा रॉय ने भारतीय सिनेमा में एक नई दिशा दिखाई है, जो वैश्विक मंच पर नई आवाजों और अनूठी कहानियों को सामने ला रही है। "सॉन्ग्स ऑफ फॉरगॉटन ट्रीज" भारतीय सिनेमा के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय कहानियों की बढ़ती प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। फिल्म भारतीय सिनेमाघरों में 2025 के अंत तक रिलीज होने की उम्मीद है।