31 अगस्त, 2025 को सूडान के मर्राह पहाड़ों में स्थित तारासिन गांव एक भयानक भूस्खलन की चपेट में आ गया। कई दिनों की मूसलाधार बारिश के कारण मिट्टी के अत्यधिक संतृप्त होने से यह विनाशकारी घटना हुई। इस आपदा ने नींबू-उत्पादक गांव को पूरी तरह से तबाह कर दिया, जिसमें कम से कम 1,000 लोगों की जान चली गई। सूडान लिबरेशन मूवमेंट (एसएलएम) के अनुसार, केवल एक व्यक्ति को जीवित बचाया जा सका। इस घटना ने स्थानीय आजीविका पर पड़े पूर्ण प्रभाव का आकलन करने के प्रयासों को और जटिल बना दिया है।
मर्राह पहाड़ियाँ, जहाँ तारासिन गाँव स्थित है, एक ज्वालामुखीय क्षेत्र है जो अपने आसपास के इलाकों की तुलना में कम तापमान और अधिक वर्षा के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र की विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियाँ, विशेष रूप से लगातार हुई भारी बारिश, मिट्टी के अत्यधिक संतृप्त होने और अंततः भूस्खलन का कारण बनीं। इस आपदा में गाँव के प्रसिद्ध खट्टे फलों के बागान भी नष्ट हो गए, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे।
यह त्रासदी सूडान में चल रहे गृहयुद्ध के बीच हुई है, जिसने पहले से ही दारफुर क्षेत्र को गंभीर चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। अप्रैल 2023 में सूडानी सेना और रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (आरएसएफ) के बीच शुरू हुए संघर्ष ने देश को एक बड़े मानवीय संकट में धकेल दिया है। युद्ध के कारण, दारफुर जैसे क्षेत्र अक्सर अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठनों के लिए दुर्गम हो जाते हैं, जिससे बचाव और राहत कार्यों में बाधा आती है।
एसएलएम ने संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानवीय संगठनों से खोज एवं बचाव कार्यों और पीड़ितों के शवों को निकालने में सहायता की अपील की है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सूडान की प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भेद्यता को और बढ़ा रहा है। अनियमित वर्षा पैटर्न और चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि ने देश को भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया है।
यह घटना इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे पर्यावरणीय कारक और मानव-निर्मित संघर्ष एक साथ मिलकर समुदायों के लिए विनाशकारी परिणाम उत्पन्न कर सकते हैं। यह भूस्खलन सूडान के लिए एक गंभीर मानवीय त्रासदी है, जो देश की नाजुक स्थिति को और उजागर करती है। यह घटना न केवल एक प्राकृतिक आपदा का परिणाम है, बल्कि यह संघर्षों के प्रभाव और जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौतियों का भी एक मार्मिक अनुस्मारक है। ऐसे समय में, सामूहिक मानवीय प्रतिक्रिया और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता सर्वोपरि है, ताकि प्रभावित समुदायों को सहायता मिल सके और भविष्य में ऐसी त्रासदियों से निपटने के लिए समझ विकसित की जा सके।